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अभ्‍यास-37 (सौरभ कुमार इन्‍दुरख्‍या)

created Aug 2nd 2020, 06:00 by sourabh indurkhya


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    कितने आश्‍चर्य की बात है कि भारत जैसा कृषि प्रधान देश आज अपनी उदरपूर्ति के लिये दूसरे देशों को ओर देखता है हमारे देश की अस्‍सी प्रतिशत जनता प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से कृषि या कृषि सम्‍बन्‍धी कार्यो द्वारा अपनी जविका चलाती है, जब तक कि अमेरिका की केवल ग्‍यारह प्रतिशत जनता कृषि में लगी हुई है ये अस्‍सी प्रतिशत लोग अपनी और अपने देश की उदरपूर्ति करने में असमर्थ है, जब तक ग्‍यारह प्रतिशत लोग अपने देश का ही नहीं, संसार के अनेक देशो का पेट भरते है हमारे देश में कृषि उत्‍पादन में इतनी कमी होने के कारण हैं:-  
    (1) हमारे देश का किसान अशिक्षित है वह परम्‍परागत पद्धति से ही खेती बाड़ी कर रहा है खेती की वैज्ञानिक पद्धति नहीं जानता (2) उसे आधुनिक यन्‍त्रों से लाभ उठाने का अवसर नहीं मिलता (3) खेतों के लिये खाद्य और पानी सामुचित व्‍यवस्‍था नहीं हैं (4) खेत छोटे-छोटे टुकड़ो में बटे हुए है जिनमें लाभ की खेती नही होती (5) कृषकों के पास खेती में लगाने के लिये पर्याप्‍त पूंजी नहीं हैं ये कुछ ऐसे कारण हैं जो हमारी खाद्य स्थिति को ठीक होने नहीं देते इनके अ‍तरिक्‍त कुछ और कारण भी है देश के विभाजन से पूर्व पश्चिम बंगाल गेहूँ के उत्‍पादन में देश के अन्‍य प्रांतो की अपेक्षा कहींअधिक आगे था पूर्वी बंगाल चावल के उत्‍पादन में अग्रणी था दुर्भाग्‍य से भारत के ये अन्‍य भण्‍डार पाकिस्‍तान में चले गये और हमारे देश की खाद्य स्थिति जटिल से जटिलतम होती चली गई सिंचाई का अभाव भी एक समस्‍या बनकर हमारे सामने खड़ी हुई हैं।  भारत के अधिकांश भू-भाग में किसान काले बादलों की प्रतीक्षा में ही अपने भाग्‍य की रेखाओं को देखा करते है  
    भारत जब स्‍वतंत्र हुआ, तो खाद्य समस्‍या उसके सामने अपने भयंकर रूप में खड़ी थी बंगाल में लाखों लोग भयानक अकाल के शिकार हो चुके थे देश दुर्भिक्ष की दहलीज पर खड़ा था कांग्रेस सरकार ने निश्‍चय किया की देश में बंगाल के अकाल की स्थिति की पुनरावृत्ति नहीं होने देगी     

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