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अभ्यास-38 (सौरभ कुमार इन्दुरख्या)
created Aug 1st 2020, 12:23 by sourabh indurkhya
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साफ बात करने वाला आदमी नापसन्द किया जाता है । लोग उसकी एक गलत तस्वीर सामने रखते है ताकि नासमझ आदमियों को उस खीचड़ फेकने का एक मौका मिले । गाँधी मीठा और नरम सच बोलते थे । डॉ. राममनोहर लोहिया कड़वा, गरम और सच । वे मानते थे कि देश के करोड़ो लोगों का मन अन्याय और गैर-बराबरी थककर जकड़ गया है । उनको धक्का मारना चाहिए । वे सादियों की मानी बातों पर, संस्कारों की जड़ पड़ी नसो पर हथौड़े की चोट मारते थे और आदमी तिलमिला उठता था । प्रवाह में बहने वाला आदमी हड़बड़ा जाता था, जब सामने बहती धारा को रोककर मोड़ देने वाला पहाड़ देखना था । लोहिया ऐसे ही क्राँतिकारी विचारक थे । उनका काम करने का क्षेत्र था राजनीति, लेकिन राजनीति में रहते हुए भी लोहिया ने भारत और दुनिया के मसले पर सोचा, विचार किया और नया रास्ता बताया । उस रास्ते पर खुद चले और अपने सहयोगियों को भी चलाया ।
लगभग 57 साल पहले 23 मार्च 1910 को उत्तरप्रदेश के सामान्य कस्बे (अकबरपुर) में राममनोहर लोहिया का जन्म हुआ । पिता और ताऊ लोहे के व्यापारी थे, अत: ये लोग लोहिया कहलाते थे । लोहिया के पहले पैदा और परिवार के 20-22 बच्चे एक के बाद एक मरते गये । इसका कारण किसी ब्रह्मराक्षस का शाप कहा जाता है । अब राममनोहर लोहिया पैदा हुए तो माँ ने बालक को धेले में हरिजन की औरत और फिर बाद में मुसलमान को बेच दिया था । बाद में उपहार में पाकर माता ने बालक का पालन पोषाण किया । लेकिन तीन-चार साल की उम्र होते की माँ चली गई । पिता हीरालाल लोहिया ने बालक का पालन-पोषाण किया । पिता हीरालाल लोहिया ने अकबरीपुर का कारोबार छोड़-समेट कर गाँजी का मार्ग और राजनीति को अपनाया । वे कलकत्ता आये । लोहिया की शिक्षा भी बम्बई, कलकत्ता में हुई । आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया । लेकिन लोहिया को अंग्रेजो की विद्या पसन्द नही आई । वे सोचने लगे कि जो देश, हमारे लगे कि जो देश, हमारे देश को गुलाम बनाकर राज चला रहा है, उनकी विद्या से दिमागी गुलामी मिल सकती है । वे चुपचाप जर्मनी चले गये ।
लगभग 57 साल पहले 23 मार्च 1910 को उत्तरप्रदेश के सामान्य कस्बे (अकबरपुर) में राममनोहर लोहिया का जन्म हुआ । पिता और ताऊ लोहे के व्यापारी थे, अत: ये लोग लोहिया कहलाते थे । लोहिया के पहले पैदा और परिवार के 20-22 बच्चे एक के बाद एक मरते गये । इसका कारण किसी ब्रह्मराक्षस का शाप कहा जाता है । अब राममनोहर लोहिया पैदा हुए तो माँ ने बालक को धेले में हरिजन की औरत और फिर बाद में मुसलमान को बेच दिया था । बाद में उपहार में पाकर माता ने बालक का पालन पोषाण किया । लेकिन तीन-चार साल की उम्र होते की माँ चली गई । पिता हीरालाल लोहिया ने बालक का पालन-पोषाण किया । पिता हीरालाल लोहिया ने अकबरीपुर का कारोबार छोड़-समेट कर गाँजी का मार्ग और राजनीति को अपनाया । वे कलकत्ता आये । लोहिया की शिक्षा भी बम्बई, कलकत्ता में हुई । आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया । लेकिन लोहिया को अंग्रेजो की विद्या पसन्द नही आई । वे सोचने लगे कि जो देश, हमारे लगे कि जो देश, हमारे देश को गुलाम बनाकर राज चला रहा है, उनकी विद्या से दिमागी गुलामी मिल सकती है । वे चुपचाप जर्मनी चले गये ।
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