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अभ्यास-41 (सौरभ कुमार इन्दुरख्या)
created Jul 30th 2020, 13:33 by sourabh indurkhya
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चलचित्र इसी युग की देन है । पहले हम नाटकों को केवल सुना ही न करते थे वरन् देखा भी करते थे । आज उन नाटकों ने वर्तमान सिनेमा का रूप ले लिया है । सिनेमा वर्तमान समय में मनोरंजन के मुख्य साधनों में से एक है । प्रत्येक दिन प्रतिदिन हजारों की संख्या में सभ्य, असभ्य गरीब, अमीर, विद्यार्थी, व्यवसायी, सभी सिनेमा देखते है । भारत में सिनेमा की उन्नति दिन-प्रतिदिन हो रही है ।
हमारे अंग्रेजों को ध्यान है कि सिनेमा का प्रभाव युवक तथा युवतियो के चरित्र के ऊपर पड़ता है । इसी कारण वे हम लोगों के ऊपर प्रतिबन्ध लगा दिया करते हैं । सिनेमा के दृश्य यद्यापि हृदयस्पर्शी होते है फिर भी इसका मतलब यह नहीं है कि चरित्रों को बिगाड़ने का दोष सिनेमा पर ही लगाया जाय । प्रत्येक व्यक्ति अपनी रूचि तथा दृष्टिकोण के अनुसार चित्रों का अर्थ निकालता है तथा शिक्षा ग्रहण करता है । पश्चिमी देशों में चित्रों की सहायता से शिक्षा का प्रचार प्रसार होता है । यदि इंग्लैण्ड, अमेरिका, जर्मनी, रूस अदि के इतिहास का अध्ययन करें तो हमें ज्ञात होगा कि चलचित्रों ने शिक्षा-प्रसार तथा राष्ट्र-निर्माण करने में कितनी सहायता पहुँचाई है । आज भी इन देशों में कृषि शिक्षा अदि चलचित्रों द्वारा ही दी जाती है ।
भारत, संसार में अमेरिका के बाद दूसरा देश है जो सबसे अधिक चलचित्रों का निर्माण करता है । भारत केवल चलचित्रों का निर्माता है न ही उच्चकोटि के चित्रों का । भारतीय निर्माताओं का उद्देश्य जनता से पैसे ऐंठना रहता है । शिक्षाप्रिद का निर्माण करना वे या तो जानते ही नही या उन्हें इस बात की आशंका रहती है कि उच्चकोटि के और शिक्षाप्रिद और सामाजिक चित्र बनायेंगे तो उनकी उतनी आय न होगी जितनी घृणित और निम्नकोटि के चित्रों से होती है । आज हमारी राष्ट्रीय सरकार भी इस बात के प्रति उदासीन है ।
चित्रों का स्तर ऊंचा करना आवश्यक है । निम्नकोटि के चित्रों का प्रभाव भी अशिक्षित जनता और विद्यार्थी वर्ग के चरित्र के ऊपर पड़ता है । इसका स्तर केवल सरकारी नियमों को कठोरतापूर्वक लागू करने से ही हो सकता है । भारत को आज स्वतंत्र हुए 72 वर्ष हो चुके हैं, किन्तु इस बीच भारतीय चित्रों के स्तर में कोई भी अन्तर दिखलाई नही पड़ता है । दूसरी कमजोरी भारतीय ''फिल्म सेंसर बोर्ड'' की है । इस कमजोरी में कितने ही ऐसे सदस्य है जिन्हें अच्छे तथा बुरे चित्रों को अलग अलग करने की क्षमता नहीं है । तभी तो वे उन चित्रों के लिए आज्ञा दे देते है जिन्हें देखने से हानि के अतरिक्त लाभ की आशा नहीं की जा सकती । दूसरी ओर कभी उन चित्रों के ऊपर लगा दिया जाता है अथवा उनमें से कोई दृश्य काटने की आज्ञा दे देते है जो बहुत ही लाभ व शिक्षाप्रद होते है ।
हमारे अंग्रेजों को ध्यान है कि सिनेमा का प्रभाव युवक तथा युवतियो के चरित्र के ऊपर पड़ता है । इसी कारण वे हम लोगों के ऊपर प्रतिबन्ध लगा दिया करते हैं । सिनेमा के दृश्य यद्यापि हृदयस्पर्शी होते है फिर भी इसका मतलब यह नहीं है कि चरित्रों को बिगाड़ने का दोष सिनेमा पर ही लगाया जाय । प्रत्येक व्यक्ति अपनी रूचि तथा दृष्टिकोण के अनुसार चित्रों का अर्थ निकालता है तथा शिक्षा ग्रहण करता है । पश्चिमी देशों में चित्रों की सहायता से शिक्षा का प्रचार प्रसार होता है । यदि इंग्लैण्ड, अमेरिका, जर्मनी, रूस अदि के इतिहास का अध्ययन करें तो हमें ज्ञात होगा कि चलचित्रों ने शिक्षा-प्रसार तथा राष्ट्र-निर्माण करने में कितनी सहायता पहुँचाई है । आज भी इन देशों में कृषि शिक्षा अदि चलचित्रों द्वारा ही दी जाती है ।
भारत, संसार में अमेरिका के बाद दूसरा देश है जो सबसे अधिक चलचित्रों का निर्माण करता है । भारत केवल चलचित्रों का निर्माता है न ही उच्चकोटि के चित्रों का । भारतीय निर्माताओं का उद्देश्य जनता से पैसे ऐंठना रहता है । शिक्षाप्रिद का निर्माण करना वे या तो जानते ही नही या उन्हें इस बात की आशंका रहती है कि उच्चकोटि के और शिक्षाप्रिद और सामाजिक चित्र बनायेंगे तो उनकी उतनी आय न होगी जितनी घृणित और निम्नकोटि के चित्रों से होती है । आज हमारी राष्ट्रीय सरकार भी इस बात के प्रति उदासीन है ।
चित्रों का स्तर ऊंचा करना आवश्यक है । निम्नकोटि के चित्रों का प्रभाव भी अशिक्षित जनता और विद्यार्थी वर्ग के चरित्र के ऊपर पड़ता है । इसका स्तर केवल सरकारी नियमों को कठोरतापूर्वक लागू करने से ही हो सकता है । भारत को आज स्वतंत्र हुए 72 वर्ष हो चुके हैं, किन्तु इस बीच भारतीय चित्रों के स्तर में कोई भी अन्तर दिखलाई नही पड़ता है । दूसरी कमजोरी भारतीय ''फिल्म सेंसर बोर्ड'' की है । इस कमजोरी में कितने ही ऐसे सदस्य है जिन्हें अच्छे तथा बुरे चित्रों को अलग अलग करने की क्षमता नहीं है । तभी तो वे उन चित्रों के लिए आज्ञा दे देते है जिन्हें देखने से हानि के अतरिक्त लाभ की आशा नहीं की जा सकती । दूसरी ओर कभी उन चित्रों के ऊपर लगा दिया जाता है अथवा उनमें से कोई दृश्य काटने की आज्ञा दे देते है जो बहुत ही लाभ व शिक्षाप्रद होते है ।
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