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व्‍यक्तित्‍व की पहचान

created Jul 27th 2020, 10:14 by Soniya S


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एक बार महाराजा विक्रमादित्‍य को शिकार की इच्‍छा हुई उन्‍होंने अपने कुछ सैनिकों और मंत्री को साथ में लिया और निकल पड़े जंगल की ओर, जंगल काफी घना था। कुछ देर भटकने के बाद एक  शिकार पर उनकी नजर पड़ी। शिकार का पीछा करते करते वे काफी दूर निकल गए।महाराजा विक्रमादित्‍य के साभी साथी पीछे छूट गये। उन्‍होंने साथियों की तलाश में सारा जंगल छान मारा, पर उन्‍हें निराशा ही हाथ लगी। अचानक कुछ दुरी पर उनकी नजर वृक्ष की छांव में बैठे एक वृद्ध पर पड़ी। समीप जाने पर उन्‍हें पता चला की वृद्ध नेत्रहीन है। यह देखकर विक्रमादित्‍य कुछ निराश हुए,फिर कुछ सोच-विचार कर उस वृद्ध से पुछा , 'सुरसागरजी! क्‍या आप बता सकते हैं  कि कोई राहगीर अभी-अभी यहाॅँ से निकला  है ?' उस वृद्ध ने कहा , 'महाराज, सबसे पहले तो आपका सैनिक निकला था ,उसके पीछे-पीछे आपका सेनानायक और उसके बाद आपके मंत्री अभी-अभी यहां से गए। उन्‍होंने जिज्ञासा भरे स्‍वर में कहा, 'सूरसागरजी! आपको तो आंखों से दिखता नहीं है, फिर आपने मुझे कैसे पहचाना? आप यह भी बता रहे हैं कि मेरे सैनिक, नायक और मंत्री यहां से अभी-अभी निकले हैं।
वृद्ध ने कहा, 'महाराज! मैंने आपके सैनिक, नायक और मंत्री की बातें सुनी और उसी से अनुमान लगा लिया। सबसे पहले आपके सैनिक ने आकर पूछा, क्‍यों रे अंधे, यहां से अभी-अभी कोई निकला है क्‍या? उसके बाद सेनानायक ने आकर मुझसे पुछा, 'सूरजी! यहां से अभी-अभी कोई गुजरा है ? नायक के पीछे आपके मंत्रीजी ने आकर पूछा, सूरदासजी! यहां से अभी-अभी कोई निकला है?' अंत में आपने स्‍वयं आकर कहा, 'सूरसागरजी! क्‍या यहां से कोई राहगीर अभी-अभी निकला है? महाराज! वाणी व्‍यक्ति की पद-प्रतिष्‍ठा, बड़प्‍पन और व्‍यक्तित्‍व की पहचान अपने आप करा देती है।

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