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साँई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jul 7th 2020, 11:24 by sandhya shrivatri
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गुजरात में एक व्यापारी रहते थे, जिनका नाम सुखीराम था। सुखीराम सुबह-सुबह उठकर नाहने के बाद भगवान का भजन करता था। फिर ठीक समय पर दुकान खोल कर बैठ जाते थे। उनकी ईमानदारी के चर्चे चारों तरफ थे। जब उनके बच्चे जवान हो गए तो उन्होंने पिताजी का काम संभाल लिया। सुखीराम मन ही मन सोचने लगे कि अब 60 वर्ष की आयु हो गई है। ऐसे में दुकान का लालच छोड़कर क्यों नहीं पूरा समय भगवान के भजन और जन सेवा में लगाया जाए। लेकिन उनका मन कहता, अभी तो नाती पोतों को पढ़ाना लिखाना है। उनके विवाह करने हैं। इन सबसे से निपट जाने के बाद ही दुकान छोड़ने के बारे में सोचना ठीक रहेगा।
इसी उधेड़बुन में वह एक दिन जब सुबह-सुबह टहलने जा रहे थे, सड़क पर एक सफाई करने वाली महिला, झाडू लगा रही थी। सुखी राम जी को भी सड़क पर चलते हुए देखकर महिला ने कहा, सेठ जी आप एक तरफ हो जाइए। बीच में रहेंगे तो आपके ऊपर धूल पड़ जाएगी। एक तरफ हो जाएंगे तो धूल से बचे रहेंगे।
महिला के इन शब्दों ने सेठजी की आंखे खोल दी। उन्हें भी महसूस होने लगा कि दो नावों में सवार होने वाले का कभी कल्याण नहीं होता है। उन्होंने तुरंत दुकान की चाबी अपने बेटों को सौपते हुए कहा- मैंने इतने साल कमाने में बिता दिए हैं अब शेष जीवन कमाए हुए धन से लोगों की सेवा करना चाहता हूं और भगवान का भजन करना चाहता हूं। यह सनुकर उनके बेटे को बुरा तो लगा, लेकिन परिवारजनों ने सुखीराम को सभी दायित्व से मुक्त कर दिया। सुखीराम भक्ति और सेवा में डूब चुके थे। कुछ समय में सुखीराम को लोग भगत सुखीराम के नाम से जानने लगे।
इसी उधेड़बुन में वह एक दिन जब सुबह-सुबह टहलने जा रहे थे, सड़क पर एक सफाई करने वाली महिला, झाडू लगा रही थी। सुखी राम जी को भी सड़क पर चलते हुए देखकर महिला ने कहा, सेठ जी आप एक तरफ हो जाइए। बीच में रहेंगे तो आपके ऊपर धूल पड़ जाएगी। एक तरफ हो जाएंगे तो धूल से बचे रहेंगे।
महिला के इन शब्दों ने सेठजी की आंखे खोल दी। उन्हें भी महसूस होने लगा कि दो नावों में सवार होने वाले का कभी कल्याण नहीं होता है। उन्होंने तुरंत दुकान की चाबी अपने बेटों को सौपते हुए कहा- मैंने इतने साल कमाने में बिता दिए हैं अब शेष जीवन कमाए हुए धन से लोगों की सेवा करना चाहता हूं और भगवान का भजन करना चाहता हूं। यह सनुकर उनके बेटे को बुरा तो लगा, लेकिन परिवारजनों ने सुखीराम को सभी दायित्व से मुक्त कर दिया। सुखीराम भक्ति और सेवा में डूब चुके थे। कुछ समय में सुखीराम को लोग भगत सुखीराम के नाम से जानने लगे।
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