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सॉंई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Jul 1st 2020, 09:15 by Sai computer typing
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अपने व्यक्तित्व को समुन्नत बनाकर राष्ट्रीय समृद्धि के संबंध में नारी कितना बड़ा योगदान दे सकती है इसे उन देशों में जाकर आंखों से देखा या समाचारों से जाना जा सकता है जहां नारी को मनुष्य मान लिया गया है और उसके अधिकार उसे सौंप दिए गए है, नारी उपयोगी परिश्रम करके देश की प्रगति में योगदान तो दे ही रही है साथ ही साथ परिवार की आर्थिक समृद्धि भी बढ़ा रही है और इस प्रकार सुयोग्य बनकर रहने पर अपने को गौरवान्वित अनुभव कर रही है, जिससे परिवार को छोटा सा उद्यान बनाने और उसे सुरक्षित पुष्पों से भरा भूरा बनाने में सफल हो रही है।
अगर हम इतिहास की माने तो हम ये पाते हैं कि नारी ने पुरूष के सम्मान एवं प्रतिष्ठा के लिए स्वयं की जान दांव पर लगा दी, नारी के इसी पराक्रम के चलते यह कहावत सर्वमान्य बन कर साबित हुई की प्रत्येक पुरूष की सफलता के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है। प्रत्येक दिवस मनाया जाना वाला ये उत्सव, माफ कीजियेगा मैंने उत्सव शब्द का प्रयोग महिला दिवस के परिपेछय में इसलिए किया है की मेरा ऐसा मानना है की ये उत्सव ही तो है जहां वर्ष में कम से कम एक दिन सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन करने वाली नारी शक्ति के योगदान की पूरे विश्व में सराहना की जाती है, ये तो सर्वविदित है कि समाज निर्माण में जितना योगदान पुरूषों का होता है उतना ही योगदान स्त्री का भी परन्तु जिस प्रकार का सम्मान पुरूषों को समाज में मिलता है उतना स्त्री को नहीं मिल पाता है, इसका प्रमुख कारण समाज की संक्रिण सोच महिलाओं को लेकर, परन्तु अब समय बदल गया है कुछ वर्षो पहले तक बहुत से ऐसे खेल थे जिसमें नारी की शारीरिक रूप से दुर्बल समझ कर खेलने से रोका जाता था आज उन्ही खेलों में वो अपना परचम लहरा रही है, फिर तो चाहे बात हो मुक्केबाजी, भारोत्तोलन, बैडमिंटन या फिर टेनिस की।
अगर हम इतिहास की माने तो हम ये पाते हैं कि नारी ने पुरूष के सम्मान एवं प्रतिष्ठा के लिए स्वयं की जान दांव पर लगा दी, नारी के इसी पराक्रम के चलते यह कहावत सर्वमान्य बन कर साबित हुई की प्रत्येक पुरूष की सफलता के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है। प्रत्येक दिवस मनाया जाना वाला ये उत्सव, माफ कीजियेगा मैंने उत्सव शब्द का प्रयोग महिला दिवस के परिपेछय में इसलिए किया है की मेरा ऐसा मानना है की ये उत्सव ही तो है जहां वर्ष में कम से कम एक दिन सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन करने वाली नारी शक्ति के योगदान की पूरे विश्व में सराहना की जाती है, ये तो सर्वविदित है कि समाज निर्माण में जितना योगदान पुरूषों का होता है उतना ही योगदान स्त्री का भी परन्तु जिस प्रकार का सम्मान पुरूषों को समाज में मिलता है उतना स्त्री को नहीं मिल पाता है, इसका प्रमुख कारण समाज की संक्रिण सोच महिलाओं को लेकर, परन्तु अब समय बदल गया है कुछ वर्षो पहले तक बहुत से ऐसे खेल थे जिसमें नारी की शारीरिक रूप से दुर्बल समझ कर खेलने से रोका जाता था आज उन्ही खेलों में वो अपना परचम लहरा रही है, फिर तो चाहे बात हो मुक्केबाजी, भारोत्तोलन, बैडमिंटन या फिर टेनिस की।
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