Text Practice Mode
जब हिसाब मांगती है जिंदगी
created May 23rd 2020, 10:55 by soni51253
1
676 words
33 completed
3
Rating visible after 3 or more votes
00:00
एक हफ्ते के अंदर आरिफ और जाकिर ने किस्मत से समझौता कर लिया और नाजनीन की शादी की तैयारी में जी-जान से जुट गए। आरिफ को अचानक बरसों पहले नगमा, जो जबलपुर की सबसे खूबसूरत लड़की थी, की शादी याद आ गयी। नगमा की शादी एक अधेड़ आदमी से हो रही थी। आरिफ ने उस वक्त कहा था कि नगमा के भाइयों को शर्म से पानी से डूब मरना चाहिए था कि वे कैसे अपनी बहन को इस बुड्ढे के साथ जिंदगी भर के लिए बांधने जा रहे हैं। मैं उसके भाई की जगह पर होता तो ऐसा कभी भी नहीं होने देता। और अब जब नाजनीन की शादी हो रही थी तो वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था। उसके अपने कहे शब्द लौट-लौट कर उसे बिच्छू की तरह डंक मार रहे थे।
नाजनीन के निकाह से तीन दिन पहले कमांडेंट ऑफिस से सरकारी क्वार्टर खाली करने को नोटिस आया। अब्बा को रिटायर हुए एक साल से ज्यादा हो चुका था। नियम के अनुसार छः महीने से ज्यादा सरकारी क्वार्टर में नहीं रह सकते। इससे पहले भी कई नोटिस आ चुके थे। हालांकि इस नियम को बहुत लोग नहीं मानते थे। अब बब्बन यादव को देख लीजिए, उसको रिटायर हुए तीन साल हो गए थे, लेकिन मजाल है कि कोई उसे एक नोटिस भेज दे। वैसे भी उसकी बात कुछ अलग ही थी, क्योंकि उसका मुख्यमंत्री आवास में आना-जाना था। दूसरे थे राजनाथ सिंह, जिनका ट्रांसफर मुंगेर हो चुका था। लेकिन डेढ़ साल से सरकारी मकान में डटे हुए थे। अब्बा को तो मुख्यमंत्री के साथ कोई लेना-देना नहीं था। इसलिए वह कमांडेंट ऑफिस गए और उनसे गुजारिश की कि नाजनीन की शादी होने तक उन्हें सरकारी मकान में रहने दें। आरिफ भी उनके साथ था।
कमांडेंट बहुत गुस्से में था। जब भी तुम्हें मिलता है कोई ना कोई बहाना बनाकर आ जाते हो। अब यह कह रहे हो कि दूसरी बेटी की शादी है। रशीद खान यहां कोई सिस्टम और नियम-कानून भी हैं कि नहीं! जिसे सबको मनना पड़ता है। हम तुम्हें अब ज्यादा वक्त नहीं दे सकते। दो दिन के अंदर मकान खाली करो नहीं तो मुझे जबरदस्ती करनी पड़ेगी। कमांडेंट बड़ी बद्तमीजी से बोला। आरिफ को यह सब सुनकर बड़ा ही ताज्जुब हो रहा था। यह वही आदमी था, जो एक जमाने में अब्बा को अपना भाई कहा करता था, उसे याद था कि उस दिन जब इसी कमांडेंट पर करप्शन के आरोप लगे थे तो दौड़ा हुआ मदद के लिए अब्बा के पास आया था, क्योंकि वह जानता था कि डीजीपी साहब अब्बा पर बहुत विश्वास करते हैं। आखिरकार हाथ जोड़कर विनती की। ‘एक हफ्ता दे दीजिए हुजूर। शादी होने के अगले दिन ही मैं मकान खाली कर दूंगा।’ अब्बा को इस जगह गुजारिश करते देखकर आरिफ का दिल तार-तार हो गया। अगर मैं लायक होता तो शायद अब्बा को हाथ नहीं जोड़ने पड़ते। ‘नियम तो नियम है।’ कमांडेंट ने बड़ी बेरूखी से कहा। अब्बा मायूस होकर लौटने लगे कि तभी इस कमांडेंट की आवाज आई, रूको अब्दुल रशीद। देखो मैं तीन महीने और देता हूं। लेकिन कृपा करके इस बार मकान खाली कर देना।
थैंक यू सर, अब्बा ने सिर झुका कर कहा। केबिन से बाहर निकलने के पहले अब्बू ने बार-बार कमांडेंट का शुक्रिया अदा किया। जैसे ही वे केबिन से बाहर निकले, आरिफ की निगाह कमांडेंट आर.पी.सिंह की नेम प्लेट पर पड़ गई। वह लाल और नीली नेम प्लेट थी, जिस पर कमांडेंट के नाम के नीचे आईपीएस लिखा था। यह बोर्ड पढ़ते ही उसके दिल में एक अजीब खलिश का अहसास हुआ। अगर आज आरिफ के नाम के आगे आईपीएस या आईएएस लगा होता तो अब्बा को इस तरह गिड़गिड़ाना नहीं पड़ता। वह हाथों को मलते हुए अपने गुजरे बक्त का अफसोस करने लगा। परेड ग्राउंड में लगभग 50-60 नए रंगरूटों की पासिंग आउट परेड हो रही थी। हजारों बूटों की दमक से धरती कांप रही थी और लेफ्ट-राइट-लेफ्ट की आवाज हवा में गूंज रही थी। आसपास के पेड़ों पर पंछियों ने कोलाहल शुरू कर दिया था। अब्बा को किसी और आदमी से मिलना था, इसलिए आरिफ अकेला ही अपने फ्लैट की तरफ चल पड़ा।
नाजनीन के निकाह से तीन दिन पहले कमांडेंट ऑफिस से सरकारी क्वार्टर खाली करने को नोटिस आया। अब्बा को रिटायर हुए एक साल से ज्यादा हो चुका था। नियम के अनुसार छः महीने से ज्यादा सरकारी क्वार्टर में नहीं रह सकते। इससे पहले भी कई नोटिस आ चुके थे। हालांकि इस नियम को बहुत लोग नहीं मानते थे। अब बब्बन यादव को देख लीजिए, उसको रिटायर हुए तीन साल हो गए थे, लेकिन मजाल है कि कोई उसे एक नोटिस भेज दे। वैसे भी उसकी बात कुछ अलग ही थी, क्योंकि उसका मुख्यमंत्री आवास में आना-जाना था। दूसरे थे राजनाथ सिंह, जिनका ट्रांसफर मुंगेर हो चुका था। लेकिन डेढ़ साल से सरकारी मकान में डटे हुए थे। अब्बा को तो मुख्यमंत्री के साथ कोई लेना-देना नहीं था। इसलिए वह कमांडेंट ऑफिस गए और उनसे गुजारिश की कि नाजनीन की शादी होने तक उन्हें सरकारी मकान में रहने दें। आरिफ भी उनके साथ था।
कमांडेंट बहुत गुस्से में था। जब भी तुम्हें मिलता है कोई ना कोई बहाना बनाकर आ जाते हो। अब यह कह रहे हो कि दूसरी बेटी की शादी है। रशीद खान यहां कोई सिस्टम और नियम-कानून भी हैं कि नहीं! जिसे सबको मनना पड़ता है। हम तुम्हें अब ज्यादा वक्त नहीं दे सकते। दो दिन के अंदर मकान खाली करो नहीं तो मुझे जबरदस्ती करनी पड़ेगी। कमांडेंट बड़ी बद्तमीजी से बोला। आरिफ को यह सब सुनकर बड़ा ही ताज्जुब हो रहा था। यह वही आदमी था, जो एक जमाने में अब्बा को अपना भाई कहा करता था, उसे याद था कि उस दिन जब इसी कमांडेंट पर करप्शन के आरोप लगे थे तो दौड़ा हुआ मदद के लिए अब्बा के पास आया था, क्योंकि वह जानता था कि डीजीपी साहब अब्बा पर बहुत विश्वास करते हैं। आखिरकार हाथ जोड़कर विनती की। ‘एक हफ्ता दे दीजिए हुजूर। शादी होने के अगले दिन ही मैं मकान खाली कर दूंगा।’ अब्बा को इस जगह गुजारिश करते देखकर आरिफ का दिल तार-तार हो गया। अगर मैं लायक होता तो शायद अब्बा को हाथ नहीं जोड़ने पड़ते। ‘नियम तो नियम है।’ कमांडेंट ने बड़ी बेरूखी से कहा। अब्बा मायूस होकर लौटने लगे कि तभी इस कमांडेंट की आवाज आई, रूको अब्दुल रशीद। देखो मैं तीन महीने और देता हूं। लेकिन कृपा करके इस बार मकान खाली कर देना।
थैंक यू सर, अब्बा ने सिर झुका कर कहा। केबिन से बाहर निकलने के पहले अब्बू ने बार-बार कमांडेंट का शुक्रिया अदा किया। जैसे ही वे केबिन से बाहर निकले, आरिफ की निगाह कमांडेंट आर.पी.सिंह की नेम प्लेट पर पड़ गई। वह लाल और नीली नेम प्लेट थी, जिस पर कमांडेंट के नाम के नीचे आईपीएस लिखा था। यह बोर्ड पढ़ते ही उसके दिल में एक अजीब खलिश का अहसास हुआ। अगर आज आरिफ के नाम के आगे आईपीएस या आईएएस लगा होता तो अब्बा को इस तरह गिड़गिड़ाना नहीं पड़ता। वह हाथों को मलते हुए अपने गुजरे बक्त का अफसोस करने लगा। परेड ग्राउंड में लगभग 50-60 नए रंगरूटों की पासिंग आउट परेड हो रही थी। हजारों बूटों की दमक से धरती कांप रही थी और लेफ्ट-राइट-लेफ्ट की आवाज हवा में गूंज रही थी। आसपास के पेड़ों पर पंछियों ने कोलाहल शुरू कर दिया था। अब्बा को किसी और आदमी से मिलना था, इसलिए आरिफ अकेला ही अपने फ्लैट की तरफ चल पड़ा।
saving score / loading statistics ...