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दान देने की आदत
created May 21st 2020, 15:16 by 123Aravind
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मेरी कमाई का 60 प्रतिशत हिस्सा प्रतिदिन के व्यसनों में खर्च होता था। मैंने कई बार प्रतिज्ञा की, मंदिरों में अनुष्ठान किया, पवित्र तीर्थों में जाकर शराब की बोतलें फेंक आया, गुरुओं को वचन दिया, पत्नी के सामने प्रतिज्ञा की लेकिन शराब व व्यसनों ने पीछा नहीं छोड़ा। हार मान चुका था कि मैं तो शराबी ही रहूँगा। मेरे जीवन में एक अच्छी बात यह थी कि 10 वर्ष की उम्र से ही गरीबों को दान करने, मदद करने का बहुत शौक था। यदि भोजन पर बैठा और कोई भिखारी आ गया तो परोसी हुई थाली हाथ नहीं गया होगा। धार्मिक स्थलों तथा मंदिरों में जितने भी भण्डारे होते थे, मैं खुले रूप से उनको सब्जी एवं फलों का दान करता था। ईश्वर की ऐसी कृपा रहती थी कि जितना दान कर देता था उसका दुगुना-तिगुना भगवान मुझे दे देते थे इसलिए मैं दान देने में अपना साैभाग्य समझता था। कोई भी संस्था, चाहे वह किसी भी धर्म की हो, मैं सबको सहयोग देता ही था क्योंकि सेवा करने से, दान करने से बहुत ही खुशी व शान्ति का अनुभव होता था।
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