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साई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैंच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created May 21st 2020, 11:59 by rajni shrivatri
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जीवन प्रबंधन एक ऐसा विषय है, जिसे सीखने की जरूरत हर किसी को है। यदि इस विषय को समझने में कोई हिचकता है या आनाकानी करता है, तो भी जीवन में आने वाली परिस्थितियां उसे यह विषय सीखने के लिए मजबूर कर देती है। जिंदगी का हर पल हमें कुछ सिखाकर जाता है। लेकिन यदि व्यक्ति बिलकुल भी होश में नहीं है तो वह इसका लाभ नहीं ले सकता, अन्यथा जीवन में मिलने वाली असफलताएं, परेशानियां, चुनौतियां, अपमान, शारीरिक व मानसिक कष्ट यह बताते है कि जिंदगी जीने में कहीं कोई भूल हुई है, जिसका परिणाम आज भुगतना पड़ रहा है। यदि आज भी इसके जीने के तौर-तरीके नहीं सीखे गए और इन भूलों को दोहराते रह गए तो आने वाला भविष्य अंधकारमय-कष्टमय हो सकता है। निश्चिचत तौर पर जीवन को संभालने के लिए जीवन को गहराई से समझना जरूरी है। इसके सिद्धातों को जानना जरूरी है और अपनी क्षमताओं को पहचानना और उनका सही नियोजन करना भी उतना ही जरूरी है।
व्यक्ति अपने पूरे जीवन में खुशियां तलाशता है, फिर भी उसे तृप्ति नहीं मिल पाती, जिसकी वह तलाश करता है। वह सुकून उसको नहीं मिल पाता, जो उसे आत्मसंतुष्टि दे सकें, सार्थकता का अनुभव करा सके। इसके लिए व्यक्ति को अपनी चाहतों के ढेर में से सही चाहत को तलाशना होगा। जो चाहतें व्यक्ति पूरी करने में लगा है, उनके पूरा हो जाने पर क्या वह संतुष्ट हो जाएगा या फिर उसकी अतृप्ति बढ जाएगी। ऐसा क्या है जिसकी उसे परम आवश्यकता है, जिसके मिल जाने से उसकी अतृप्ति समाप्त हो सकती है।
हमारा जीवन जिन शक्तियों से संचालित है, उनका हम सदुपयोग भी कर सकते है और दुरूपयोग भी। यह कार्य करने के लिए हम स्वतंत्र हैं, लेकिन हम जिस तरह का कार्य करेंगे, उसका फल भोगने के लिए परतंत्र है। वहां पर हमारी स्वतंत्रता समाप्त होती है और महाकाल की स्वतंत्रता आरंभ हो जाती है। इसलिए इस तथ्य को भली प्रकार समझकर हमें कर्म करना चाहिए। जिस तरह के परिणाम की हम आशा करते है, उसके अनुरूप कर्म करने का प्रयास करना चाहिए। यदि हमारे कर्म की क्षमता ज्यादा है तो परिणाम आशा से भी अच्छे मिल सकते है और यदि कर्म की क्षमता कम है तो परिणाम आशा के विपरीत मिल सकते हैं, लेकिन सदैव वर्तमान कर्म के आधार पर अपने भविष्य में मिलने वाले परिणामों का आकलन करना उचित नहीं, क्योंकि मिलने वाले परिणाम हमारे कई शुभ व अशुभ कर्मो के फल हो सकते है। हमारे जीवन में कौन सा कर्म कब फलीभूत होगा, यह व्यक्ति के संज्ञान में नहीं होता।
व्यक्ति अपने पूरे जीवन में खुशियां तलाशता है, फिर भी उसे तृप्ति नहीं मिल पाती, जिसकी वह तलाश करता है। वह सुकून उसको नहीं मिल पाता, जो उसे आत्मसंतुष्टि दे सकें, सार्थकता का अनुभव करा सके। इसके लिए व्यक्ति को अपनी चाहतों के ढेर में से सही चाहत को तलाशना होगा। जो चाहतें व्यक्ति पूरी करने में लगा है, उनके पूरा हो जाने पर क्या वह संतुष्ट हो जाएगा या फिर उसकी अतृप्ति बढ जाएगी। ऐसा क्या है जिसकी उसे परम आवश्यकता है, जिसके मिल जाने से उसकी अतृप्ति समाप्त हो सकती है।
हमारा जीवन जिन शक्तियों से संचालित है, उनका हम सदुपयोग भी कर सकते है और दुरूपयोग भी। यह कार्य करने के लिए हम स्वतंत्र हैं, लेकिन हम जिस तरह का कार्य करेंगे, उसका फल भोगने के लिए परतंत्र है। वहां पर हमारी स्वतंत्रता समाप्त होती है और महाकाल की स्वतंत्रता आरंभ हो जाती है। इसलिए इस तथ्य को भली प्रकार समझकर हमें कर्म करना चाहिए। जिस तरह के परिणाम की हम आशा करते है, उसके अनुरूप कर्म करने का प्रयास करना चाहिए। यदि हमारे कर्म की क्षमता ज्यादा है तो परिणाम आशा से भी अच्छे मिल सकते है और यदि कर्म की क्षमता कम है तो परिणाम आशा के विपरीत मिल सकते हैं, लेकिन सदैव वर्तमान कर्म के आधार पर अपने भविष्य में मिलने वाले परिणामों का आकलन करना उचित नहीं, क्योंकि मिलने वाले परिणाम हमारे कई शुभ व अशुभ कर्मो के फल हो सकते है। हमारे जीवन में कौन सा कर्म कब फलीभूत होगा, यह व्यक्ति के संज्ञान में नहीं होता।
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