Text Practice Mode
साई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैंच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created May 20th 2020, 10:03 by lucky shrivatri
2
327 words
19 completed
5
Rating visible after 3 or more votes
00:00
विक्रमादित्य प्राचीन भारत में उज्जैन का प्रसिद्ध राजा था। वह अपने न्याय तथा बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध था। विक्रम संवत् का आरम्भ उसी से ही होता है। वह इतिहास में सबसे महान् न्यायाधीश के रूप में प्रसिद्ध हो गया था। उसने अपनी प्रजा को पूर्ण न्याय प्रदान किया। अपराधी उसके सामने आते ही कांपने लगते थे, क्योंकि वे जानते थे कि उसकी आंखें उनके अपराध को स्पष्ट रूप से देख लेंगी। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका महल तथा किला खण्डहर बन गए। कुछ समय पश्चात् उज्जैन के लोग उसे भूल गए। खण्डहर घास, धूल तथा पेड़ों में दब गए। गांव वालों ने अपने मवेशियों को वहां चराने के लिए भेजना आरम्भ कर दिया। एक दिन चरवाहे बच्चों ने एक हरा टीला देखा। वह किसी न्यायाधीश की कुर्सी (सिंहासन) जैसा दिखता था। उनमें से एक चरवाहा, बच्चा उस पर बैठ गया। उसने बच्चों को उसके पास झगड़े के मामले लाने को कहा तथा उन्हें बताया कि वह उन पर निर्णय लेगा। जब वह उस सिंहासन पर बैठता था, वह शान्त और गम्भीर हो जाता था। ज्ञान तथा न्याय की भावना उसमें आ जाती थी तथा वह सच्चा न्याय कर देता था। लड़का प्रसिद्ध हो गया। सभी गम्भीर झगड़े उसके सामने रखे जाते थे। वह उन सभी को हल कर देता था, लेकिन जब भी वह उस सिंहासन से नीचे आता तो अन्य बच्चों के समान एक साधारण चरवाहा दिखाई पड़ता।जब उज्जैन के राजा ने यह कहानी सुनी, वह समझ गया कि वह विक्रमादित्य का सिंहासन था। इसलिए उसने उस स्थान की खुदाई कराई तथा विक्रमादित्य के न्याय सिंहासन को पाया। वह उसे न्यायालय भवन में लाया तथा उस पर बैठना चाहा, लेकिन उन देवदूतों ने जो सिंहासन को लिए हुए थे राजा को चेतावनी दी कि वह उस पर बैठने योग्य नहीं है। सभी देवदूत एक-दूसरे के बाद अपने-अपने सिंहासन, जिसका वे आधार बने हुए थे, को लेकर आकाश में उड़ गए और इस प्रकार विक्रमादित्य का न्याय सिंहासन पृथ्वी से सदा-सदा के लिए अदृश्य हो गया।
saving score / loading statistics ...