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सॉंई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created May 19th 2020, 12:46 by Sai computer typing


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असुरो से सभी घृणा करते है, क्‍योंकि उनकी भावनाओं में स्‍वार्थ होता और भोग-लालसा इतनी प्रबल होती है कि वे इसके लिए दूसरों के अधिकार, सुख और सुविधाएं छीन लेने में कुछ भी संकोच नहीं करते। उनके पास रहने वाले भी दु:खी रहते हैं और व्‍यक्तिगत बुराइयों के कारण उनका निज का जीवन तो अशांत होता ही है। दु:ख की यह अवस्‍था किसी के लिए भी अभीष्‍ट नहीं है। हम सुख भोगने के लिए इस संसार में आए है। दु:खो से हमें घृणा है, पर सुख के सही स्‍वरूप को भी तो समझना चाहिए। इंद्रियों के बहकावे में आकर जीवन पथ से भटक जाना मनुष्‍य जैसे बुद्धिमान प्राणी के लिए श्रेयस्‍कर नहीं लगता। इससे हमारी शक्तियां पतित होती है। अशक्‍त होकर भी क्‍या कभी सुख की कल्‍पना की जा सकती है। भौतिक शक्तियों से संपन्‍न व्‍यक्ति का इतना सम्‍मान होता है कि सभी लोग उसके लिए छटपटाते हैं, फिर आध्‍यात्मिक शक्तियों के चमत्‍कारो की तो कल्‍पना भी नही की जा सकती। देवताओं के सम्‍मुख सभी नत-मस्‍तक होते हैं, क्‍योंकि उनके पास शक्ति का अक्ष्‍य कोष माना जाता है हम अपने देवत्‍व को जागृत करें, तो वैसी ही शक्ति की प्राप्ति हमें भी हो सकती है। तब हम सच्‍चे सुख की अनुभूति भी कर सकेंगे और हमारा जीवन सार्थक होगा। हमें असुरों की तरह नहीं, देवताओं की तरह जीना चाहिए। देवत्‍व ही इस जीवन का सर्वोत्‍तम वरदान हैं, हमें इस जीवन को वरदान की तरह ही जीना चाहिए।   

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