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created Mar 19th 2020, 11:31 by sachin bansod


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लगता है आजकल के राजनेता पूरी तरह मीडिया के भरोसे बैठ गए है। तभी तो काम और प्रचार अधिक की नीति पर काम करने लगे हैं। काम करो, नहीं करो लेकिन जनता की नजरों में हमेशा बने रहो। शायद यही सोचकर प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों को सोशल मीडिया पर सक्रिय होने के निर्दश दिये है। बिहार चुनाव में करारी हार के बाद उन्‍हें महसूस हुआ कि मंत्री जनता से कटते जा रहे हैं। और सरकारी योजनाओं की जानकारी जन-जन तक नही पहुंच पा रही। प्रधानमंत्री की सोच एक हद तक ठीक हो सकती है कि काम कि मंत्री अगर काम करेंगे और सरकार वादे पूरी करती नजर आएगी प्रचार कि जरूरत ही नही रह जाएगी। कहते है कि काम खुद बोलता है और उसका ढिंढोरा पीटने की जरूरत नहीं। बिहार चुनाव से पहले भाजपा ने क्‍या-क्‍या जतन नहीं किए थे चुनाव जीतने के लिए। सहारा सोशल मीडिया का भी लिया गया था और प्रिंट और इलक्‍ट्रॉनिक मीडिया का भी। अखबार भी विज्ञापनों से पाट दिए थे और टीवी चैनल भी भाजपा की उपलब्धियों वाले विज्ञापनों से सराबोर थे। प्रचार के मामले में लग रहा था कि भाजपा के लिए भले चौंकाने वाले रहे हों लेकिन जो जनता के लिए नही। बिहार की हार भाजपा के लिए सबक होनी चाहिए थी अपनी कार्यशैली में सुधार लाने के लिए। बिहार विधानसभा के चुनाव हुए दो माह होने जा रहे हैं लेकिन सक्रिय होने की सलाह देने वजाय अपने-अपने मंत्रालयों के काम को लेकर सक्रिय होने की सलाह दें। काम होगा तो अपने आप दिखेगा  और उसके लिए किसी प्रचार की जरूरत नहीं रह जाएगी। जरूरत उ‍स दौर को याद करने की है जब सोशल मीडिया और इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया तो दूर प्रिंट मीडिया भी बहुत अधिक प्रभावी नहीं था। अनेक राजनेता तब भी लगातार चुनाव जीतते थे। उनकी जीत का कारण उनका काम होता था जो स्‍वत: जनता के बीच प्रचारित हो जाता था। सुरसा सी मुंह बाए खड़ी महंगाई अगर कम हो जाए तो क्‍या उसका प्रचार करने की जरूरत पड़ेगी? लोगों तक बात अपने आप पहुच जाएगी। महंगाई पर काबू नहीं पाया जा सके और आतंकवाद रोजाना दहशत में जीने को मजबूर करता रहे तो भी मीडिया मंत्रियों की मदद नहीं कर पाएगा।

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