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सॉंई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Feb 27th 2020, 02:41 by Saityping
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एक दिन राजा भोज गहरी निद्रा मे सोये हुए थे। उन्हें उनके स्वप्न मे एक अत्यंत तेजस्वी वृद्ध पुरुष के दर्शन हुए। राजन ने उनसे कहा महात्मा आप कौन है वृद्ध ने कहा राजन मैं सत्य हूं और तुझे तेरे कार्यो का वास्तविक रूप से दिखाने आया हूं मेरे पीछे-पीछे चल आ और अपने कार्यो की वास्ताविकता को देख राजा भोज उस वृद्ध के पीछे-पीछे चल दिए। राजा भोज बहुत दान, पुण्य यज्ञ, व्रत तीर्थ, कथा-कीर्तन करते थे, उन्होंने अनेक तालाब मंदिर कुएं बगीचे आदि भी बनवाए थे राजा के मन में इन कार्यो के कारण अभिमान आ गया था। वृद्ध पुरुष के रूप में आये सत्य ने राजा भोज को अपने साथ उनकी कृतियों के पास ले गए। वहां जैसे ही सत्य ने पेड़ों को छुआ सब एक-एक करके सूख गए, बागीचे बंजर भूमि में बदल में गए। राजा इतना देखते ही आर्श्चयचकित रह गया। फिर सत्य राजा को मंदिर ले गया। सत्य ने जैसे ही मंदिर को छुआ वह खंडहर में बदल गया। वृद्ध पुरुष ने राजा के यज्ञ, तीर्थ,कथा पूजन दान आदि के लिए बने स्थानों व्यक्ति आदि चीजों को ज्योें ही छुआ वे सब राख हो गए। राजा यह सब देखकर विक्षिप्त सा हो गया। सत्य ने कहा राजन यश की इच्छा के लिए जो कार्य किये जाते है उनसे केवल अंहकार की पुष्टि होती है धर्म का निर्वहन नहीं। सच्ची सदभावना से निस्वार्थ होकर कर्तव्य भाव से जो कार्य किये जाते है उन्हीं का फल पुण्य के रूप मिलता है और यह पुण्य फल का रहस्य है। इतना कहकर सत्य अंतर्धान हो गए। राजा ने निद्रा टूटने पर गहरा विचार किया और सच्ची भावना से कर्म करना प्रारंभ किया, जिसके बल पर उन्हें ना सिर्फ यश-कीर्ति की प्राप्ति हुए बल्कि उन्होंने बहुत पुण्य भी कमाया। मित्रों सच ही तो है, सिर्फ प्रसिद्धि और आदर पाने के नजरिये से किया गया काम पुण्य नहीं देता हमने देखा है कई बार लोग अखबारों और चैनल्स पर आने के लिए झाडू उठा लेते है या किसी गरीब बस्ती का दौरा कर लेते हैं ऐसा करना पुण्य नहीं दे सकता, असली पुण्य तो हृदय से कि गयी सेवा से ही उपजता है, फिर वो चाहे हजारों लोगों की गयी हो या बस किसी एक व्यक्ति की।
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