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साई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैंच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Feb 26th 2020, 02:26 by renukamasram


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प्रेम को सीमाओं में बांधो, प्रेम तो असीम है। यदि आपका प्रेम मित्रों एवं सम्‍बन्धियों तक ही सीमित है, तो वह सच्‍चा प्रेम नहीं। वह तो स्‍वार्थ है। मदर टेरेसा का प्रेम सीमा में बंधा हुआ था। ईसा मसीह का प्रेम सीमित था। एक सच्‍चा प्रेमी जितना अपने बच्‍चे पर दयालु होता है, उतना ही वह एक गली के भिखारी पर भी होता है। सच्‍चा प्रेम शब्‍दों तक सीमित नहीं रहता, अपितु वह कर्म में प्रकट होता है। सच्‍चा प्रेमी आंधी की तरह नहीं आता, मूसलधार की तरह नहीं बरसता। वह तो शीत में सुखदायी धूप के समान अथवा घास में रिमझिम की तरह आनन्‍दमयी होता है। सच्‍चा प्रेम समर्पण की भावना से ओत-प्रोत होता है। जो लोग स्‍वार्थी होते हैं, निराशवादी होते हैं, जो अपने ही मतलब की बात देखते हैं, उनका जीवन कम हो जाता है। दूसरों का उपकार करने से जो आनन्‍द एवं आत्मिक बल मिलता है, वह तंगदिल लोगों को नहीं मिल पाता। मनुष्‍य प्रेम तभी करता है, जब वह उसे कर्तव्‍य समझता है। पति अपनी पत्‍नी से प्रेम करता है तो प्रेम को कर्तव्‍य समझता है। माता सन्‍तान पर स्‍नेह उंड़ेलती है, तो कर्तव्‍य समझकर ही। सर्दी-गर्मी, भूख-प्‍यास और नींद-आराम की परवाह करके एक मां अपने शिशु को पालती है। उसमें यह शक्ति प्रेम के कारण ही उत्‍पन्‍न होती है। बहुत-सी माताएं अपने विस्‍तृत परिवार का पालन बड़े-बड़े कष्‍ट तथा कठिनाइयों को झेलकर करती हैं। वास्‍तव में प्रेम एक ऐसी चमत्‍कारी शक्ति है, जिसके द्वारा कोई भी माता हंसते-‍हंसते सारे कष्‍टों को झेल जाती है। अपने वात्‍सल्‍य प्रेम के कारण ही माता निराशा, निर्धनता, कष्‍ट एवं दु:खों को भी हंसते-हंसते सह जाती है, क्‍योंकि उसे अपने बालक से प्रेम होता है। तभी तो विश्‍व में माता को प्रेम स्‍नेह का आदर्श रूप समझा जाता है। यदि हम विश्‍व-प्रेम को समझना चाहें, तो मां के प्रेम के समान कहकर इसे समझाया जाएगा। मानवता के सब प्रकार के  दु:ख एवं संकट दूर करने की एकमात्र दवा यह है कि मनुष्‍य में मनुष्‍य-मात्र के प्रति प्रेम किया जाए। प्रेम तो एक संजीवनी है जिससे मनुष्‍य को जीने का सहारा मिलता है, जीने की तमन्‍ना बढ़ती है। जब कोई भी व्‍यक्ति, मनुष्‍य-मात्र  से प्‍यार करता है, तो उसमें ईश्‍वरीय शक्ति जाती है। प्रेम एक ऐसी संजीवनी बूटी है, जिससे मनुष्‍य का जीवन बनता, बढ़ता एवं संवरता है। जलन, ईर्ष्‍या, कुढ़न एवं विरोध से आयु घटती है। अक्‍सर जो लोग निर्दयी एवं कठाेर समझे जाते हैं, विवाहोपरान्‍त वे भी कोमल एवं सहृदयी बन जाते हैं। सच्‍चे प्रेम की चमत्‍कारी शक्ति उनमें एक अनूठा परिवर्तन ला देती है।

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