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साई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्यू बैंच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Feb 25th 2020, 12:48 by sandhya shrivatri
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अमरीका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपनी दो दिवसीय यात्रा पर सोमवार को भारत पहुंचे। अपने पूरे परिवार और बड़े प्रतिनिधिमण्डल के साथ उनका पहला दिन अहमदाबाद और आगरा में हुए स्वागत में बीता। अब सबकी नजर कल पर टिकी है कि आपसी बातचीत के बीच कल कौन-कौन से करारों पर दस्तखत होते हैं और किसे क्या मिलता हैं, भारत को क्या मिलता है और अमरीका क्या ले जाता है। कल क्या होगा, कल पता चलेगा लेकिन आज की तारीख में देश की बड़ी आबादी यह मान कर चलने वाली है कि संयुक्त राज्य अमरीका से कुछ भी लेना बहुत आसान नहीं है। जब हम रोनाल्ड रीगन, जॉर्ज बुश, जिमी कार्टर, बिल क्लिंटन और बराक ओबामा से कुछ नहीं ले पाए तब यह तो ट्रंप है। पहले वाले ज्यादातर राष्ट्रपति चाहे वे डेमोक्रेट थे या रिपब्लिक, व्यापारी नहीं, राजनेता थे। ट्रंप तो खुद पूरे व्यावसायिक हैं। ऐसे में भले ही अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में सवा लाख लोगों के बीच उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मोल-भाव में माहिर और कठिन से कठिन परिस्थितियों को अपने पक्ष में कर लेने वाला बताया हो, लेकिन फिर भी पलड़ा ट्रंप का ही भारी माना जाएगा। दुनिया जिसे बड़ा माने वह दूसरे को बड़ा बताए, यानी वो बिना कुछ दिए माहौल को अपने पक्ष में करना चाहता है। फिर भी आज की तारीख में यदि हमें अमरीका और ट्रंप से कुछ बड़ी चीज चाहिए तो वह है दशकों से हमारी मांग रही संयुक्त राष्ट्र महासभा की स्थायी सदस्यता।
संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्यों में एक चीन ही हमारे खिलाफ है। हालांकि चीन और अमरीका के रिश्ते भी उतने अच्छे नहीं हैं, लेकिन ट्रंप चाहें तो मोल-भाव की अपनी कला का बेहतरीन प्रदर्शन कर इसमें हमारे मददगार बन सकते हैं। जुबानी जमा खर्च में इस मुद्दे पर अमरीका सालों से हमारे साथ है, लेकिन यदि वह चीन से ऐसा करा पाता है तो भारतीयों के पास भी, 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय अपने सातवें बेड़े को भारत के विरूद्ध भेजने के अमरीकी कदम को भूलने का एक मजबूत आधार बन जाएगा। इसके अलावा आज हमारी बड़ी समस्या आतंकवाद आर्थिक मंदी के दौर में गिरती जीडीपी, बढ़ती बेरोजगारी और बंद होते कारखाने हैं। दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति के भारत में होने के बावजूद, शेयर बाजार की गिरावट का जारी रहना भी कोई सकारात्मक संदेश नहीं देता। यदि इन सब मुद्दों पर हमें कुछ नहीं मिलता और केवल कुछ व्यापारिक या सैन्य समझौते ही होकर रह जाते हैं, जिनका आर्थिक लाभ अंतत: अमरीका को ही मिलना है तब यही माना जाएगा कि इस यात्रा का असल मकसद इसी वर्ष नवम्बर में हाेने वाला राष्ट्रपति चुनाव है जिसके लिए हाउडी मोदी में साफ संकेत जा चुका है- अबकी बार ट्रंप सरकार।
संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्यों में एक चीन ही हमारे खिलाफ है। हालांकि चीन और अमरीका के रिश्ते भी उतने अच्छे नहीं हैं, लेकिन ट्रंप चाहें तो मोल-भाव की अपनी कला का बेहतरीन प्रदर्शन कर इसमें हमारे मददगार बन सकते हैं। जुबानी जमा खर्च में इस मुद्दे पर अमरीका सालों से हमारे साथ है, लेकिन यदि वह चीन से ऐसा करा पाता है तो भारतीयों के पास भी, 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय अपने सातवें बेड़े को भारत के विरूद्ध भेजने के अमरीकी कदम को भूलने का एक मजबूत आधार बन जाएगा। इसके अलावा आज हमारी बड़ी समस्या आतंकवाद आर्थिक मंदी के दौर में गिरती जीडीपी, बढ़ती बेरोजगारी और बंद होते कारखाने हैं। दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति के भारत में होने के बावजूद, शेयर बाजार की गिरावट का जारी रहना भी कोई सकारात्मक संदेश नहीं देता। यदि इन सब मुद्दों पर हमें कुछ नहीं मिलता और केवल कुछ व्यापारिक या सैन्य समझौते ही होकर रह जाते हैं, जिनका आर्थिक लाभ अंतत: अमरीका को ही मिलना है तब यही माना जाएगा कि इस यात्रा का असल मकसद इसी वर्ष नवम्बर में हाेने वाला राष्ट्रपति चुनाव है जिसके लिए हाउडी मोदी में साफ संकेत जा चुका है- अबकी बार ट्रंप सरकार।
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