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जगदम्बा साईबर कैफे
created Feb 25th 2020, 02:17 by SushobhitKachhi
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आरोपी के अधिकार
दण्डी प्रक्रिया संहिता के अपबंधों का मूल उद्देश्य यही है कि प्रत्येक आरोपी के किसी भी अपराध का विचारण और तत्ससम्बमन्धी समस्त प्रक्रिया जिसमें उसकी गिरफ्तारी, निरुद्ध किया जाना या जॉंच पड़ताल) वह निष्पीक्षतापूर्ण तरीके से सम्पन्न की जाना चाहिए। निष्पक्ष विचारण का सिद्धान्त, सार्वभौमिक मानव अधिकारों से जुड़ा हुआ है। मानव अधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा पत्र 1948, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने मान्यता प्रदान की है इसके अनुच्छेद 10 एवं 11 में मानव अधिकारों की सुरक्षा एवं संरक्षण को गारंटी प्रदान की गई है इस घोषणा पत्र को राष्ट्र संघ की महासभा से स्वीक्रति प्राप्त है और यह 10 दिसम्बनर 1948 से लागू है।
भारत में विचारण की दोषिता या अभियोजनात्मक पद्धति:-
भारत में किसी अपराध के विचारण के लिए दोषिता पद्धति अभियोजनात्मसक को स्वीकार किया गया है और अभियोजन पक्ष को आरोपी को अपराध सिद्ध करने का भार सौपा गया है। यदि आरोपी निर्दोष है तो उसका अभियोजन नहीं होगा और उसके अपराधी होने के सबूत मिलते है तो उसे अदालत में पेश कर उसे दण्डित कराना ही अभियोजन का लक्ष्य होता है।
आरोपी के अधिकार:-
1. आरोपी के निरपराध होने की मान्यता:- आरोपी पर प्रारम्भ से ही प्रत्येक विचारण में उसके निर्दोष मानने के साथ प्रारम्भ होता है। संहिता के प्रत्येक उपबंध इस प्रकार से निष्प:क्षतापूर्ण चलना चाहिए कि पूरा अवसर प्रदान किया जाए कि वह निर्दोष है और इसमें उसका अभिभाषक और स्वयं वह अपने बयानों द्वारा इसे सिद्ध करने का अधिकार रखता है।
2. एक गिरफ्तार व्याक्ति के अधिकार:-
(1) गिरफ्तारी के कारणों की सूचना देना:- किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी चाहे वारंट द्वारा की जाए अथवा बिना वारण्ट द्वारा की जाए, तत्काल ही उसे अपनी गिरफ्तारी के कारणों से अवगत काराया जाए। इस बिन्दू् पर संहिता के निम्न उपबंध है;
धारा 50- गिरफ्तारी के कारणों की उस व्यिक्ति को सूचना दी जाए और उसे जमानत प्राप्ति करने का अधिकार है।
धारा 55- यदि किसी व्यक्ति को बिना वारण्टि के गिरफ्तार किया गया है तो भार-साधक अधिकारी उसे वह आदेश बताए जिसके आधार पर उसे बंदी बनाया गया है।
धारा76- यदि कोई व्याक्ति वारण्ट के आधार पर गिरफ्तारी किया गया है तो चाहने पर उसे वारण्ट बताया जाए।
• जमानत के अधिकार की सूचना देना:- यदि कोई जमानतीय अपराध में गिरफ्तार किया गया है तो उसे जमानत के अधिकार की सूचना दी जाए, जिसके आधार पर उसकी रिहाई हो सकती है ( धारा50(2)
• बिना देरी किये आरोपी को दण्डाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार ( धारा- 56, 76)
• न्याययिक पड़ताल के बिना 24 घण्टे से अधिक समय तक किसी व्यक्ति को निरूद्ध नहीं किया जा सकता है। ( धारा- 56, 76)
बम्बई उच्च न्यानयालय ने एक प्रकरण में पुलिस अधिकारियों की इस बात के लिए आलोचना की कि आरोपी को 24 घण्टे में दण्डाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। इस अधिकार को भारत के सम्बन्धित मूल अधिकार के रूप में स्थापित किया गया है। (अनुच्छेरद 22(2)
• आरोपी को अपने अभिभाषक से भी परामर्श लेने का अधिकार प्राप्तु है। (अनु. 22(2)
• एक गिरफ्तार व्यक्ति को नि: शुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है और इसकी उसे सूचना दी जाना चाहिए।
( सुशोभित काछी)
दण्डी प्रक्रिया संहिता के अपबंधों का मूल उद्देश्य यही है कि प्रत्येक आरोपी के किसी भी अपराध का विचारण और तत्ससम्बमन्धी समस्त प्रक्रिया जिसमें उसकी गिरफ्तारी, निरुद्ध किया जाना या जॉंच पड़ताल) वह निष्पीक्षतापूर्ण तरीके से सम्पन्न की जाना चाहिए। निष्पक्ष विचारण का सिद्धान्त, सार्वभौमिक मानव अधिकारों से जुड़ा हुआ है। मानव अधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा पत्र 1948, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने मान्यता प्रदान की है इसके अनुच्छेद 10 एवं 11 में मानव अधिकारों की सुरक्षा एवं संरक्षण को गारंटी प्रदान की गई है इस घोषणा पत्र को राष्ट्र संघ की महासभा से स्वीक्रति प्राप्त है और यह 10 दिसम्बनर 1948 से लागू है।
भारत में विचारण की दोषिता या अभियोजनात्मक पद्धति:-
भारत में किसी अपराध के विचारण के लिए दोषिता पद्धति अभियोजनात्मसक को स्वीकार किया गया है और अभियोजन पक्ष को आरोपी को अपराध सिद्ध करने का भार सौपा गया है। यदि आरोपी निर्दोष है तो उसका अभियोजन नहीं होगा और उसके अपराधी होने के सबूत मिलते है तो उसे अदालत में पेश कर उसे दण्डित कराना ही अभियोजन का लक्ष्य होता है।
आरोपी के अधिकार:-
1. आरोपी के निरपराध होने की मान्यता:- आरोपी पर प्रारम्भ से ही प्रत्येक विचारण में उसके निर्दोष मानने के साथ प्रारम्भ होता है। संहिता के प्रत्येक उपबंध इस प्रकार से निष्प:क्षतापूर्ण चलना चाहिए कि पूरा अवसर प्रदान किया जाए कि वह निर्दोष है और इसमें उसका अभिभाषक और स्वयं वह अपने बयानों द्वारा इसे सिद्ध करने का अधिकार रखता है।
2. एक गिरफ्तार व्याक्ति के अधिकार:-
(1) गिरफ्तारी के कारणों की सूचना देना:- किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी चाहे वारंट द्वारा की जाए अथवा बिना वारण्ट द्वारा की जाए, तत्काल ही उसे अपनी गिरफ्तारी के कारणों से अवगत काराया जाए। इस बिन्दू् पर संहिता के निम्न उपबंध है;
धारा 50- गिरफ्तारी के कारणों की उस व्यिक्ति को सूचना दी जाए और उसे जमानत प्राप्ति करने का अधिकार है।
धारा 55- यदि किसी व्यक्ति को बिना वारण्टि के गिरफ्तार किया गया है तो भार-साधक अधिकारी उसे वह आदेश बताए जिसके आधार पर उसे बंदी बनाया गया है।
धारा76- यदि कोई व्याक्ति वारण्ट के आधार पर गिरफ्तारी किया गया है तो चाहने पर उसे वारण्ट बताया जाए।
• जमानत के अधिकार की सूचना देना:- यदि कोई जमानतीय अपराध में गिरफ्तार किया गया है तो उसे जमानत के अधिकार की सूचना दी जाए, जिसके आधार पर उसकी रिहाई हो सकती है ( धारा50(2)
• बिना देरी किये आरोपी को दण्डाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार ( धारा- 56, 76)
• न्याययिक पड़ताल के बिना 24 घण्टे से अधिक समय तक किसी व्यक्ति को निरूद्ध नहीं किया जा सकता है। ( धारा- 56, 76)
बम्बई उच्च न्यानयालय ने एक प्रकरण में पुलिस अधिकारियों की इस बात के लिए आलोचना की कि आरोपी को 24 घण्टे में दण्डाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। इस अधिकार को भारत के सम्बन्धित मूल अधिकार के रूप में स्थापित किया गया है। (अनुच्छेरद 22(2)
• आरोपी को अपने अभिभाषक से भी परामर्श लेने का अधिकार प्राप्तु है। (अनु. 22(2)
• एक गिरफ्तार व्यक्ति को नि: शुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है और इसकी उसे सूचना दी जाना चाहिए।
( सुशोभित काछी)
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