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साई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी न्‍यू बैंच प्रारंभ संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565

created Feb 24th 2020, 02:35 by renukamasram


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इस बार महाशिवरात्रि के पर्व से अंतरराष्‍ट्रीय मातृभाषा दिवस का भी संयोग जुड़ा है। शिव को महादेव कहा जाता है क्‍योंकि लोकजीवन से उनका आत्‍मीय रिश्‍ता है। बिना लोक को मान्‍यता दिए कोई भी देव महादेव नहीं हो सकता। कहते है। कि गण शोर करते हैं और इस शोर की भाषा महादेव ही समझ सकते हैं। लोककल्‍याण के लिए कंठ में गरल धारण करने वाला ही लोक के शोर में समाए उल्‍लास और पीड़ा की भाषा समझ सकता है। लोक के साथ यही  रिश्‍ता मातृभाषा का हाेता है। यदि कतिपय शास्‍त्रीय भाषाओं के अपवाद को छोड़ दिया जाए तो लोकभाषाएं मातृभाषा का सबसे समृद्ध संबोधन होती हैं। गर्भ-नाल और दूध के बाद मां से मनुष्‍य का रिश्‍ता मातृभाषा के रूप में ही जुड़ता है। मनुष्‍य का अपनी मां के साथ चैतन्‍य संबंध मातृभाषा से ही स्‍थापित होता है। ऐसे में हम यह भी कह सकते है कि यदि मां किसी बच्‍चे के संस्‍कारों की पहली पाठशाला होती है तो मातृभाषा किसी भी व्‍यक्ति के जीवन के संस्‍कारों की पहली भाषा होती हैं।
 शायद इसीलिए नेलसन मंडेला ने कहा था कि यदि आप किसी व्‍यक्ति से ऐसी भाषा में बात करते है जिसे वो अच्‍छी तरह समझता हे तो आपकी बात उसके दिमाग तक जाती है, लेकिन यदि आप उसकी मातृभाषा में उससे बात करते हैं तो आपकी बात उसके दिमाग में उतर जाती है। दिलों तक उतर गई बात ही व्‍यक्ति को जीवन के श्रेष्‍ठ मानकों की स्‍थापना के प्रति उत्‍साहित करती है। यह जो निज भाषा है, यही मातृभाषा हे। पूर्ववर्ती सोवियत संघ के जाने-माने उपन्‍यासकर रसूल हमजातोव के मेरा दागिस्‍तान में दो स्त्रियां परस्‍पर झगड़ा करते हुए एक दूसरे को कोसती हैं। पहली स्‍त्री कहती है कि ईश्‍वर करे तेरे बच्‍चाें को कोई उनकी मातृभाषा सिखाने वाला नहीं मिले तो दूसरी स्‍त्री कहती है कि ईश्‍वर करे तेरे बच्‍चे मातृभाषा से वंचित हों। किसी समाज के लिए इससे बड़ा अभिशाप क्‍या हो सकता है कि बच्‍चों को उनकी मातृभाषा के अध्‍ययन से वंचित रखा जाए। भाषा को रोजगार के उपलब्‍ध स्‍थानीय अवसरों से जोड़ना भी जरूरी है, अन्‍यथा नई पीढ़ी का जुड़ाव क्षरित हो सकता है क्‍योंकि अमुक भाषा रोजगार नहीं दे सकती। इसी कारण कई भाषाएं समाप्‍त हो गई हैं। वैश्‍वीकरण और बाजारवाद के प्रभावों का क्षेत्रीय भाषाओं को खत्‍म करने में बड़ा हाथ रहा है। भाषाएं कभी आपस में नहीं लड़तीं। जिस तरह से एक नदी का किसी अन्‍य नदी से मिलना प्रवाह को समृद्ध करता है, ठीक उसी तरह से बहुभाषाओं का ज्ञान भी अभिव्‍यक्ति को समृद्ध करता है। 1952 में ढाका में जो आंदोलन हुआ, वह राजनीतिक प्रपंच के विरोध में मुखर हुआ भाषा के प्रेमियों का स्‍वर ही था। एक पूरे समाज द्वारा अपनी भाषा के मान को लेकर जान तक दांव पर लगा देने का यह उदाहरण इतिहास में अनूठा था। इसी आंदोलन की स्‍मृति में 2008 से 21 फरवरी को अंतरराष्‍ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मान्‍यता दी गई। मातृभाषाओं को बचाना वस्‍तुत: लोक के संस्‍कारों और लोक की अभिव्‍यक्ति की मुखरता को बचाने का अनुष्‍ठान है।  

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