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साई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 सीपीसीटी टेस्ट पेपर संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नं. 9098909565
created Feb 22nd 2020, 02:36 by renukamasram
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सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वान व नृत्य तीनों के समावेश को संगीत कहते हैं, इन तीनों के एक साथ व्यवहार से संगीत शब्द बना है। गाना, बजाना और नाचना प्राय: इतने पुराने है जितना पुराना आदमी है। बजाने और बाजे की कला आदमी ने कुछ बाद में खोजी- सीखी हो पर गाने और नाचने का आरंभ तो ने उसने केवल हजारों बल्कि लाखों वर्ष पहले कर लिया होगा, इसमें कोई संदेह नहीं। गायन मानव के लिए प्राय: उतना ही स्वाभाविक है जितना भाषणा मनुष्य ने गाना कब से प्रारंभ किया, यह बतलाना उतना ही कठिन है जितना कि कब से उसने बोलना प्रारंभ किया है। परंतु बहुत काल बीत जाने के बाद उसके गायन ने व्यवस्थित रूप धारण किया। जब स्वर और लय व्यवस्थित रूप धारण करते है तब एक कला का प्रादुर्भाव होता है। और इस कला को संगीत, म्यूजिक या मौसीकी कहते है। युद्ध, उत्सव और प्रार्थना या भजन के समय मानव गाने बजाने का उपयोग करता चला आया है। संसार में सभी जातियों में बांसुरी इत्यादि फूंककर बजाए जाने वाले, कुछ तारों को झंकत करके बजाए जाने वाले और कुछ चर्म का उपयोग कर तडित करके बजाए जाने वाले वादन यंत्र उपयोग किए जाते रहे जिन्हें क्रमश: सुषिर तत और अवनद्ध वादन यंत्र कहा जाता है, ठोंककर बजाए जाने वाले उपकरणों को घन कहा जाता हैं। भारत से बाहर अन्य देशों में केवल गीत और वादन को संगीत में गिनते हैं और नृत्य को एक भिन्न कला माना जाता है। भारत में नृत्य को भी संगीत में केवल इसलिए गिन लिया गया क्योंकि उसके साथ गीत एंव वादन यंत्रों का प्रयोग हमेशा किया जाता रहा है। ऊपर लिखा जा चुका है कि स्वर और लय की कला को संगीत कहते है। स्वर और लय गीत और वाद्य की चर्चा करेंगे, क्योंकि अन्य देशों में भी संगीत से केवल इसी अर्थ में व्यवहार किया जाता है। संगीत का आदिम स्त्रोत प्राकृतिक ध्वनियां ही है।
संगीत-युग से पहले के युग में मनुष्य ने प्रकृति की ध्वनियों और उनकी विशिष्ट लय को समझने की कोशिश की। हर तरह की प्राकृतिक ध्वनियां संगीत का आधार नहीं हो सकती, अत: भाव पैदा करने वाली ध्वनियों को परखकर संगीत का आधार बनाने के साथ-साथ उन्हें लय में बाधने का प्रयास किया गया होगा। प्रकृति की वे ध्वनियां जिन्होंने मनुष्य के मन-मस्तिष्क को स्पर्श कर उल्लसित किया, वही सभ्यता के विकास के साथ संगीत का साधन बनी। दार्शनिकों ने नाद के चार भागों परा, पश्चन्ती, मध्यमा और वैखरी में से मध्यमा को संगीतापयोगी स्वर का आधार माना। डार्विन ने कहा कि पशु रति के समय मधुर ध्वनि करते हैं, मनुष्य ने जब इस प्रकार की ध्वनि का अनुकरण आरंभ किया तो संगीत का उद्भव हुआ। कार्ल स्टम्फ ने भाषा उत्पत्ति के बाद मनुष्य द्वारा ध्वनि की एकतारता को स्वर की उत्पत्ति माना। भारतेन्दु हरिशचन्द्र के अनुसार संगीत की उत्पत्ति मानवीय संवेदना के साथ हुई।
संगीत-युग से पहले के युग में मनुष्य ने प्रकृति की ध्वनियों और उनकी विशिष्ट लय को समझने की कोशिश की। हर तरह की प्राकृतिक ध्वनियां संगीत का आधार नहीं हो सकती, अत: भाव पैदा करने वाली ध्वनियों को परखकर संगीत का आधार बनाने के साथ-साथ उन्हें लय में बाधने का प्रयास किया गया होगा। प्रकृति की वे ध्वनियां जिन्होंने मनुष्य के मन-मस्तिष्क को स्पर्श कर उल्लसित किया, वही सभ्यता के विकास के साथ संगीत का साधन बनी। दार्शनिकों ने नाद के चार भागों परा, पश्चन्ती, मध्यमा और वैखरी में से मध्यमा को संगीतापयोगी स्वर का आधार माना। डार्विन ने कहा कि पशु रति के समय मधुर ध्वनि करते हैं, मनुष्य ने जब इस प्रकार की ध्वनि का अनुकरण आरंभ किया तो संगीत का उद्भव हुआ। कार्ल स्टम्फ ने भाषा उत्पत्ति के बाद मनुष्य द्वारा ध्वनि की एकतारता को स्वर की उत्पत्ति माना। भारतेन्दु हरिशचन्द्र के अनुसार संगीत की उत्पत्ति मानवीय संवेदना के साथ हुई।
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