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created Feb 8th 2020, 10:37 by Shankar D.
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संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ यूरोपीय संघ की संसद में छह राजनीतिक दलों द्वारा लाए गए प्रस्ताव पर वोटिंग टाल दिया जाना भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा सकती हालांकि नियमित प्रक्रिया के तहत प्रस्ताव पर चर्चा होती रहेगी, पर मतदान मार्च तक के लिए टल गया हैं। भारत विरोधी लॉबी के दबाव में यूरोपीय संसद में पेश किए गए प्रस्तावों पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई थी। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड मारिया सासोली को पत्र लिखकर कहा था कि नागरिकता कानून को भारतीय संसद के दोनों सदनों ने विधिवत पारित किया है
, इसलिए यूरोपीय संसद का इस बारे में कोई भी फैसला करना हमारी संप्रभुता में दखल माना जाएगा। इससे गलत परंपरा शुरू हो जाएगी। अब मार्च में शुरू होने वाले नए सत्र में ही इस पर वोटिंंग हो सकेगी। मार्च में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रसेल्स की यात्रा करने वाले है। उससे पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर प्रधानमंत्री की यात्रा का आधार तैयार करने वहांं जाएंगे। समझा जा रहा है कि यूरोपीय सांसद इस बात के लिए राजी हो गए हैं कि भारत का पक्ष जाने बगैर इस मामले में कोई निर्णय न किया जाए। दूसरी तरफ पाकिस्तान समर्थक लॉबी चाहती थी कि ब्रेग्जिट से पहले ही यूरोपीय संसद भारत के खिलाफ प्रस्ताव पास करे। यह लॉबी फिलहाल विफल हुई हैं।
संशाेधित नागरिकता कानून 10 जनवरी 2020 से देश भर में लागू हो चुका है। संबंधित विधेयक के संसद में पेश किए जाने के बाद से ही देश के भीतर और बाहर विरोध और समर्थन जारी है। भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की रणनीति के तहत पाकिस्तान ने विभिन्न देशों में दूत भेजकर उन्हें बरगलाने की कोशिश की है। इसी वजह से संयुक्त्त राष्ट्र के घोषणा पत्र व अन्य अंतरराष्ट्रीय संकल्पों का जिक्र करते हुए भारत को घेरने की कोशिश की जा रही है। यह संदेश देने की कोशिश हो रही हैं कि भारत ने नागरिकता कानून में ऐसे बदलाव किए हैं, जिनमें आने वाले दिनों में नागरिकता विहीन लोगों की संख्या दुनिया में काफी बढ़ जाएगी। मानवीय पीड़ा बढ़ाने के साथ-साथ यह विश्व के लिए एक बड़ी समस्या बन सकती हालांकि भारत सरकार का तर्क भी मजबूत है कि नागरिकता कानून में किसी की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं हैं। यह पड़ोसी देशों में धार्मिक आधार पर प्रताडि़त लोगो को नागरिकता देने का कानून है। यूरोपीय संघ की संसद में सीएए के खिलाफ प्रस्तावों पर चर्चा टलने से अब माना जा रहा है कि यूरोपीय सांसदों को अपने पक्ष मेंं करने के लिए भारत सरकार को पर्याप्त समय मिल गया है। वर्तमान में 751 सदस्यीय यूरोपीय संसद में करीब 600 सदस्य भारत सरकार के खिलाफ हैं। आने वाले दिनों में यह आंकड़ा बदल भी सकता हैं। बावजूद इसके यूरोपीय संसद की यह कार्यवाही निश्चित रूप से भारत की संप्रभुता का उल्लंघन ही मानी जाएगी।
, इसलिए यूरोपीय संसद का इस बारे में कोई भी फैसला करना हमारी संप्रभुता में दखल माना जाएगा। इससे गलत परंपरा शुरू हो जाएगी। अब मार्च में शुरू होने वाले नए सत्र में ही इस पर वोटिंंग हो सकेगी। मार्च में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रसेल्स की यात्रा करने वाले है। उससे पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर प्रधानमंत्री की यात्रा का आधार तैयार करने वहांं जाएंगे। समझा जा रहा है कि यूरोपीय सांसद इस बात के लिए राजी हो गए हैं कि भारत का पक्ष जाने बगैर इस मामले में कोई निर्णय न किया जाए। दूसरी तरफ पाकिस्तान समर्थक लॉबी चाहती थी कि ब्रेग्जिट से पहले ही यूरोपीय संसद भारत के खिलाफ प्रस्ताव पास करे। यह लॉबी फिलहाल विफल हुई हैं।
संशाेधित नागरिकता कानून 10 जनवरी 2020 से देश भर में लागू हो चुका है। संबंधित विधेयक के संसद में पेश किए जाने के बाद से ही देश के भीतर और बाहर विरोध और समर्थन जारी है। भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की रणनीति के तहत पाकिस्तान ने विभिन्न देशों में दूत भेजकर उन्हें बरगलाने की कोशिश की है। इसी वजह से संयुक्त्त राष्ट्र के घोषणा पत्र व अन्य अंतरराष्ट्रीय संकल्पों का जिक्र करते हुए भारत को घेरने की कोशिश की जा रही है। यह संदेश देने की कोशिश हो रही हैं कि भारत ने नागरिकता कानून में ऐसे बदलाव किए हैं, जिनमें आने वाले दिनों में नागरिकता विहीन लोगों की संख्या दुनिया में काफी बढ़ जाएगी। मानवीय पीड़ा बढ़ाने के साथ-साथ यह विश्व के लिए एक बड़ी समस्या बन सकती हालांकि भारत सरकार का तर्क भी मजबूत है कि नागरिकता कानून में किसी की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं हैं। यह पड़ोसी देशों में धार्मिक आधार पर प्रताडि़त लोगो को नागरिकता देने का कानून है। यूरोपीय संघ की संसद में सीएए के खिलाफ प्रस्तावों पर चर्चा टलने से अब माना जा रहा है कि यूरोपीय सांसदों को अपने पक्ष मेंं करने के लिए भारत सरकार को पर्याप्त समय मिल गया है। वर्तमान में 751 सदस्यीय यूरोपीय संसद में करीब 600 सदस्य भारत सरकार के खिलाफ हैं। आने वाले दिनों में यह आंकड़ा बदल भी सकता हैं। बावजूद इसके यूरोपीय संसद की यह कार्यवाही निश्चित रूप से भारत की संप्रभुता का उल्लंघन ही मानी जाएगी।
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