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बंसोड टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा, छिन्‍दवाड़ा मो.न.8982805777 सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रांरभ

created Nov 21st 2019, 11:21 by SARITA WAXER


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साधना का अर्थ अपनी इन्द्रियों पर और मन पर अनुशासन स्‍थापित करना है। मन, इन्द्रियों का राजा है, इसीलिए मन को साध लेने से ही साधना का मार्ग प्रशस्‍त हो जाता है। हमारे प्राचनी ऋषियों ने इसीलिए यम और नियमों की व्‍यवस्‍था की थी कि पहले अपने अन्‍तर्मन को पवित्र बनाओ, मन की मलिनताओं को दूर करो तब साधना को अपनाओ तो सुगमता से लक्ष्‍य प्राप्‍त कर सकोगे। उन्‍होंने साधना के आठ अंग बतलाये हैं यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्‍याहार, धारणा, ध्‍यान और समाधि। पहले यम, नियमादि को रखा ताकि साधक बाहर और भीतर से अनुशासित हो सके, साधना के लिए उसकी पृष्‍ठभूमि तैयार हो सके। यह बात युक्ति संगत है। इनको अपनाये बिना साधना नहीं हो सकती। मगर पूज्‍य गुरूदेव ने देखा कि लोग यम-नियमों को पूरा करने में ही सारा जीवन समाप्‍त कर देते हैं और अन्तिम लक्ष्‍य को पाना तो दूर उसे जान भी नहीं पाते कि हमारा ध्‍येय क्‍या था? कितने लोग नियमों में इतने उलझकर रह जाते हैं, इतने कट्टर बन जाते हैं कि उन्‍हें ही अपना ध्‍ये मान लेते हैं। उनके जीवन में शुष्‍कता, निष्‍ठुरता और कट्टरता जाती है। आगे का रास्‍ता अवरूद्ध हो जाता है। इसीलिए गुरूदेव ने एक बीच का रास्‍ता निकाला और हमारा प्रारंभ प्रत्‍याहार और धारणा से कराया। और कहा कि इससे ध्‍येय का ज्ञान पहलेहो जायेगा तो साधक का हौसला बुलंद होगा, श्रद्धा और विश्‍वास बढ़ेगा, वह शीघ्रता से मंजिल को पाना चाहेगा। धारणा और ध्‍यान के निरंतर अभ्‍यास से उसके जीवन में यम-नियम अपने आप उतरते जायेंगे, आसन दृढ़ होता जायेगा, प्राणायाम स्‍वभावत: होने लगेगा। इनके लिये अलग से कुछ करना नहीं पड़ेगा। इससे साधकों के समय और श्रम की बचत होगी, ध्‍येय तक पहुँचने का मार्ग छोटा हो जायेगा। मगर इसकायह अर्थ कदापि नहीं है कि हमारे लिए यम-नियमादि का पालन करने की आवश्‍यकता ही नहीं है। उन्‍होंने इनका पालन करने से मना नहीं किया, बल्कि यह कहा कि इन्‍हें पालन करने, जीवन में उतारने के लिए रूको नहीं, बल्कि धारणा-ध्‍यान के साथ-साथ चलने दो। ये सब अहिंसा, सत्‍यादि, यम-नियम आदि योग रूपी शरीर के आठ अंग हैं, आठों को पुष्‍ट करना है तभी सिद्धि मिल सकती है। कोई भी शरीर का अंग कमजोर होगा तो हम स्‍वस्‍थ कैसे रह सकते हैं। सबको ही पुष्‍ट करना है, और बारी-बारी से नहीं बल्कि एक साथ करना है। उन्‍होंने हम सब को सावधान करते हुए आगे लिखा है। यम-नियमादि का पालन करना सभी साधकों के लिए आवश्‍यक है, बिना इसके साधना चल नहीं सकती और साधक कभी पूर्ण बन सकता। यम-नियम से रहित साधना भयंकर और भयावह होगी, विनाशकारी होगी। निशाचर भी महान् तपस्‍वी और साधक थे मगर बड़े खूँखार, निर्दयी और विनाशकारी थे। यम-नियम की अनदेखी ने जीवन को विकृत बना दिया। एक सच्‍चे इंसान के बदले भयंकर दैत्‍य बना दिया।   

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