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created Nov 21st 2019, 04:05 by Buddha academy
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आप रावण के पूर्व जन्मों के बारे में तो पढ़ ही चुके हैं कि कैसे उसके जन्म का निर्धारण पहले ही हो चुका था। लेकिन हर काम से पहले उसकी एक योजना बनायी जाती है। जो कि आदेश देने वाले नहीं काम करने वाले बनाते हैं। इनमें आदेश देने वाला बस आदेश देता है जैसे की सनकादि मुनि ने जय विजय को श्राप दिया था।
ये कथा तब से शुरू होती है जब पृथ्वी पर माल्यवान माई और सुमाली नामक 3 राक्षस हुए थे। तीनों ने ब्रह्मा जी की तपस्या की और बलशाली होने के वरदान प्राप्त किये। वरदान प्राप्त करते ही सबसे पहले वो शिल्पियों में श्रेष्ठ विश्वकर्मा जी के पास गए और उन्हें शिभावन की भांति एक भवन बनाने को कहा। उन्होंने उन राक्षसों को बताया कि त्रिकुट पर्वत एक सोने की लंका है। जो उन्होंने इंद्र के कहने पर बनायी थी। चूंकि इंद्र अमरावती में रहते हैं तो तुम लोग जाकर अपना निवास स्थाना बना सकते हो। इतना सुनते ही तीनों भाई खुशी-खुशी वहां चले गये। फिर उन तीनों का विवाह हो गया। मल्यावान का विवाह सौन्दर्यवती नामक स्त्री से हुआ। वसुधा का विवाह माली के साथ हुआ। वहीं सुमाली का विवाह केतुमती के साथ हुआ।
इसके बाद उनका उत्पात बढ़ने लगा। वे सभी देवों, ऋषि-मुनियों और साधू संतो को सताने लगे। ब्रह्मा जी के वरदान के कारण कोई उनको हरा भी नहीं पा रहा था। तब इंद्र देवताओं सहित भगवान शंकर के पास गए। इतना सुनते ही तीनों भाई खुशी-खुशी वहां चले गए। फिर उन तीनों का विवाह हो गया। माल्यावान का विवाह सौन्दर्यवती नामक स्त्री से हुआ। परन्तु शंकर भगवान् ने उन्हें यह बताया कि वे राक्षस उनके द्वार नहीं मारे जा सकते। इसलिए बेहतर ये होगा कि वे भगवान विष्णु जी के पास जाएं। ये सुनकर सभी देवता शंकर भगवान की जय-जयकार करते हुए भगवान विष्णु के पास चल दिए।
जब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से उन्हें बचाने की विनती की तो भगवान श्री हरी ने उन्हें इस समस्या का निवारण करने का आश्वासन दिया और भयमुक्त होकर जाने को कहा। इसके बाद भगवान विष्णु और तीनों दैत्यों के बीच बहुत भयंकर लड़ाई हुयी। जिसमें माली मारा गया जब दैत्य इस लड़ाई में कमजोर पड़ने लगे तो वे डर के मारे लंका छोड़ पाताल लोक में चले गए। इस प्रकार लंका खाली हो गयी और उन दैत्यों का आतंक शांत हो गया वही लंका फिर पिता विश्वा के पहने पर कुबेर ने फिर से बसाई। वे वहां अपने पुष्पक विमान सहित वहां रहते थे। एक दिन सुमाली ने पृथ्वी का भ्रमण करते हुए उन्हें पुष्पक विमान पर लंका से कहीं जाते हुए देखा।
ये कथा तब से शुरू होती है जब पृथ्वी पर माल्यवान माई और सुमाली नामक 3 राक्षस हुए थे। तीनों ने ब्रह्मा जी की तपस्या की और बलशाली होने के वरदान प्राप्त किये। वरदान प्राप्त करते ही सबसे पहले वो शिल्पियों में श्रेष्ठ विश्वकर्मा जी के पास गए और उन्हें शिभावन की भांति एक भवन बनाने को कहा। उन्होंने उन राक्षसों को बताया कि त्रिकुट पर्वत एक सोने की लंका है। जो उन्होंने इंद्र के कहने पर बनायी थी। चूंकि इंद्र अमरावती में रहते हैं तो तुम लोग जाकर अपना निवास स्थाना बना सकते हो। इतना सुनते ही तीनों भाई खुशी-खुशी वहां चले गये। फिर उन तीनों का विवाह हो गया। मल्यावान का विवाह सौन्दर्यवती नामक स्त्री से हुआ। वसुधा का विवाह माली के साथ हुआ। वहीं सुमाली का विवाह केतुमती के साथ हुआ।
इसके बाद उनका उत्पात बढ़ने लगा। वे सभी देवों, ऋषि-मुनियों और साधू संतो को सताने लगे। ब्रह्मा जी के वरदान के कारण कोई उनको हरा भी नहीं पा रहा था। तब इंद्र देवताओं सहित भगवान शंकर के पास गए। इतना सुनते ही तीनों भाई खुशी-खुशी वहां चले गए। फिर उन तीनों का विवाह हो गया। माल्यावान का विवाह सौन्दर्यवती नामक स्त्री से हुआ। परन्तु शंकर भगवान् ने उन्हें यह बताया कि वे राक्षस उनके द्वार नहीं मारे जा सकते। इसलिए बेहतर ये होगा कि वे भगवान विष्णु जी के पास जाएं। ये सुनकर सभी देवता शंकर भगवान की जय-जयकार करते हुए भगवान विष्णु के पास चल दिए।
जब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से उन्हें बचाने की विनती की तो भगवान श्री हरी ने उन्हें इस समस्या का निवारण करने का आश्वासन दिया और भयमुक्त होकर जाने को कहा। इसके बाद भगवान विष्णु और तीनों दैत्यों के बीच बहुत भयंकर लड़ाई हुयी। जिसमें माली मारा गया जब दैत्य इस लड़ाई में कमजोर पड़ने लगे तो वे डर के मारे लंका छोड़ पाताल लोक में चले गए। इस प्रकार लंका खाली हो गयी और उन दैत्यों का आतंक शांत हो गया वही लंका फिर पिता विश्वा के पहने पर कुबेर ने फिर से बसाई। वे वहां अपने पुष्पक विमान सहित वहां रहते थे। एक दिन सुमाली ने पृथ्वी का भ्रमण करते हुए उन्हें पुष्पक विमान पर लंका से कहीं जाते हुए देखा।
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