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साँई टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो. नं. 9098909565

created Sep 21st 2019, 04:19 by Jyotishrivatri


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सबसे बहुमूल्‍य और सुरक्षित धन, अपनी सम्‍पत्ति से चाह वह कितनी ही थोड़ी क्‍यों हो, सन्‍तुष्‍ट रहना है। वही मनुष्‍य सबसे बड़ा धनी है, जो सबसे कम पर कम संतोष कर सकता हैं, क्‍याेंकि प्रकृति का यथार्थ धन संतोष ही है। जगत् में केवल पैसे ही ने किसी को सुखी नहीं किया, इसमें सुख उत्‍पन्‍न करने का गुण भी नहीं है। असल में तो मनुष्‍य अपने सदगुणों से ही सम्‍पत्तिवान माना जाता है। शरीर से अत्‍यन्‍त  दुखी रहने वाले धनी की अपेक्षा निरोग और बलवान गरीब बहुत अच्‍छा है।  
बुद्धिमानी के साथ खर्च करता हुआ चले तो थोड़े खर्चे से भी मनुष्‍य अपना निर्वाह कर सकता है और ज्‍यादा खर्चे से तो सारे ब्रह्माण्‍ड की सम्‍पदा भी कम हो सकती है। अपार धनशाली कुबेर भी यदि आमदानी से अधिक खर्च करे और अपात्राें में खर्च करे, तो एक दिन वह अवश्‍य भिखारी हो जायेगा। जो मूलधन या पूंजी को बिना बढ़ाने हुए खाता है, वह सदा ही दुखी रहता है। उसकी स्थिति कभी नहीं सुधरती। लोग भले ही तुझको धनवान कहें, पर मैं तो तुझे गरीब ही कहूंगा। क्‍योंकि तू अपना संचित धन का उपयोग नहीं कर सकता और सिर्फ अपने वारिसों के लिये बचाकर उसे रखता है, ऐसी हालत में संचित धन तेरा नहीं, उनका है। धन जिनका गुलाम है, वे बड़भागी है, और जो धन के गुलाम हैं, वे बड़े अभागे है।  

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