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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open {संचालक-बुद्ध अकादमी टीकमगढ़}

created Jul 20th 2019, 13:13 by


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एक बार की बात है कि एक समृद्ध व्‍यापारी जो सदैव अपने गुरु से परामर्श करके कुछ कुछ सुकर्म किया करता था, गुरु से बोला गुरुदेव धनार्जन हेतु मैं अपना गांव पीछे जरूर छोड़ आया हूं पर हर समय मुझे लगता रहता है कि वहां पर एक ऐसा देवालय बनाया जाये जिसमें देवपूजन के साथ-साथ भोजन की व्‍यवस्‍था हो अच्‍छे संस्‍कारों से लोगों को सुसंस्‍कृत किया जाये। अशरण को शरण मिले, वस्‍त्रहीन का तन ढके, रोगियों को दवा और चिकित्‍सा मिले, बच्‍चे अपने धर्म के वास्‍तविक स्‍वरूप से अवगत हो सकें। सुनते ही गुरु प्रसन्‍नतापूर्वक बोले केवल गांव में ही क्‍यों तुम ऐसा ही एक मंदिर, एक अपने गांव और दूसरे अपने नगर में जहां वह अपने परिवार के साथ रहता था, बनवा दिए। दोनों देवालय शीघ्र ही लोगों की श्रद्धा के केंद्र बन गये। लेकिन कुछ दिन ही बीते थे कि व्‍यापारी ने देखा कि नगर के लोग गांव के मंदिर में आने लगे हैं, जबकि वहां पहुंचने का रास्‍ता काफी कठिन है उसकी समझ में नहीं रहा था कि ऐसा क्‍यों हो रहा है। कुछ भारी मन से वह गुरु जी के पास गया और सारा वृत्‍तांत कह सुनाया गुरु जी ने कुछ विचार किया और फिर उसे यह परामर्श दिया कि वह गांव के मंदिर के पुजारी को नगर के मंदिर में सेवा के लिए बुला ले।

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