eng
competition

Text Practice Mode

BANSOD TYPING INSITITUTE, GULABARA CHHINIDWARA (M.P.)

created Jul 20th 2019, 11:20 by SARITA WAXER


0


Rating

413 words
16 completed
00:00
संसार में व्‍यक्तिभव रोगों से ग्रसित हो जाता है। इसको ठीक प्रकार से समझने की आवश्‍यकता है। प्रत्‍येक के घर में कई तरह के कष्‍ट आते है, तथा हर व्‍यक्ति इनसे बचने का उपाय सोचता है और ढूँढ़ता भी है। शारीरिक कष्‍ट भी हैं और मानसिक कष्‍ट भी होते हैं। शारीरिक इलाज भी होता है मानसिक इलाज भी होता है। इसनेठीक भी जो जाते है। इसके साथ-साथ आत्मिक कष्‍ट भी आते हैं, जिसका इलाज हमारे हाथ में नहीं हैं। यहा हम सत्‍संग में बैठेहुए हैं।ज्ञान की बहुत ऊँची-ऊँची बातें यहा सत्‍संग में समर्थ गुरु महाराज समाज की दशाओं को देखकर औषधि देते हैं। साधारणतया हम देखते हैं कि एक पड़ौसी दूसरे पड़ौसी को देखना नहीं चहता हैं। भाई-भाई एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं, आदि-आदि भवरोग इन्‍हें परेशान करते हैं। यह एक दूसरा पहलू है। जब हम सत्‍सग करते हैं तो हमारी ऐसी मनोदशाओं में परिवर्तन होता है। हम इन रोगों के लिए औषधि लेते हैं। औषधि सेवन के साथ-साथ हमें परहेज भी करना पड़ता है। यही दशा सत्‍संगियों की हो जातीहै। हमें यह देखना है कि सत्‍संग करने से हमारे भव-रोग दूर हुए या नहीं। यानी , समाधि आदि अवस्‍थाओं में जाने के बाद , इनसे हटने के बाद हमारे जीवन में परिवर्तन आया या नहीं। हमारी औषधि ठीक चल रही है, हम परहेज ठीक कर रहे है यह नहीं हमारा व्‍यावहारिक जीवन बदलता है या नहीं हमारे महापुरुषों का कैसा जीवन था? पूर्वकाल के सन्‍त कितने उच्‍चकोटि के थे? सनातन देव जी महाराज पंडित थे, विद्वान थे, शास्‍त्रों में उन्‍होंने दिग्जिय किया था। उनके पास शास्‍त्रार्थ करने से दिग्विजय का सरटीफिकेट मिलता था। एक व्‍यक्ति उनके पास आया। शास्‍त्रार्थ करके उनको हराना चाहता था। संत बड़े ज्ञानी थे, उसकी भावना को समझ गये। उसकी कोमल भावना को ठेस पहुँचे इस कारण उन्‍होंने व्‍यक्ति को हारने का प्रमाण-पत्र दे दिया। जब व्‍यक्ति लौट रहा था तो उसे उन्‍हीं का एक शिष्‍य मिला। शिष्‍य ने सब विवरण पूछा और कहा कि तुम मुझसे शास्‍त्रार्थ कर लो, मुझसे नहीं जीत सकते हो, तुम्‍हें गलत प्रमाण-पत्र मिल गया है। शास्‍त्रार्थ प्रारम्‍भ हुआ और वह व्‍यक्ति हार गया। यह खबर गुरुजी के पास पहुँची तथा शिष्‍य ने स्‍वयं जाकर कहा कि जिसको आपने प्रमाण-पत्र दिया था उसको मैंने हरा दिया। इस पर गुरुजी की प्रतिक्रिया थी, वह नाराज हुये और दु:खी हुये। उन्‍होंने कहा कि- हे मूर्ख ! शास्‍त्रों को पढ़ा है, विद्वान भी है लेकिन व्‍यवहार में कुछ नहीं है। इतने दिन तुमने मेरी सुहवत की लेकिन समझा कुछ नहीं।      
 
 
 

saving score / loading statistics ...