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BANSOD TYPING INSITITUTE, GULABARA CHHINIDWARA (M.P.)

created Jul 20th 2019, 11:09 by sachinbansod1609336


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हम जीवन में आत्‍मा के गुणों को बढ़ाने का प्रयास ही नहीं करते हैं और कहते हैं कि टेंशन होना तो स्‍वाभाविक है। जैसे हम किसी पौधे की जड़ में पानी नडालकर उसके पत्ते पर पानी डाल रहे हैं। और यह जड़ तक पहुंचते-पहुंचते सूख जाता है। इसी तरह परिवार में भी हम कहते हैं कि बच्‍चों का ध्‍यान रखूं या ऑफिस का ध्‍यान रखूं, इनको खुश करूं या उनको खुश करूं। एक कमजोर मन बहुत ज्‍यादा मेहनत कर रहा है। कमजोर मन, मन को ठीक नहीं कर रहा है बल्कि बहुत ज्‍यादा मेहनत कर रहा है। मान लो आज हम 10 घंटे काम करते हैं। कल अगर हम बीमार हो जाएं और 10 घंटा काम करें तो हम देखते है। कि दोनों दिनों के कार्य में अंतर पड़ जाता है। इसलिए हम क्‍या करते हैं आज तबियत ठीक नहीं लग रही है थोड़ा आराम कर लो। पहले किसी डॉक्‍टर को दिखाओ जिससे कि अगले दिन हम अच्‍छा महसूस कर सकें और पूरी क्षमता से काम कर सकें। इसी तरह अगर हम आत्‍मा के भी स्‍वास्‍थ्‍य पर ध्‍यान दें तो हमें अपने जीवन को खींचना नहीं पड़ेगा। बीमारी की स्थिति में काम करते हुए मेहनत तो लग रही है, लेकिन हम खुशी का अनुभव नहीं कर पाते हैं। माना कि हम मानसिक रूप से खुश नहीं रह पाते हैं। फिर हम मनोरंजन के लिए दूसरे तरीके ढूंढ़ने लगते हैं। जो बहुत ज्‍यादा काम करने वाले होते हैं उनको पूरी तरह से सबसे दूर होना पड़ता है, क्‍योंकि दोनों चीजें बैलेंस नहीं है। फिर वे पूरी तरह शक्तिहीन हो जाते हैं तो एकदम परिस्थितियों से समझौता करना पड़ता है।  मशीन भी सिर्फ तब तक ही अच्‍छा रिजल्‍ट देती है जब तक ठीक होती है। लेकिन बिना मेंटनेंस के मशीन भी कितने दिनों तक चलेगी अचानक बंद हो जाएगी। जब मशीन ने खराबी का संकेत देना शुरू किया था तभी हम मेंटनेंस करवा लेते तो मशीन ठीक से चल रही होती।  

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