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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open {संचालक-बुद्ध अकादमी टीकमगढ़}
created Jul 20th 2019, 10:46 by DeendayalVishwakarma
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बिहार के छपरा में मवेशी चोरी के आरोप में तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या नए सिरे से यह बता रही है कि भीड़ की हिंसा पर रोक लगाने की सख्त जरूरत है। भीड़ की हिंसा के मामले जिस तरह थमने का नाम नहीं ले रहे हैं उससे केवल कानून एवं व्यवस्था के समक्ष गंभीर सवाल ही नहीं उठ रहे हैं, बल्कि देश की बदनामी भी हो रही है। भीड़ की हिंसा के मामले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो रहे हैं और वे भारत की छवि एक ऐसे देश की बना रहे हैं जहां लोग कानून हाथ में लेने को उतावले दिखते हैं।
यह सही है कि भीड़ की हिंसा पहले भी होती रही है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि उस पर लगाम लगती न दिखे। बीते कुछ समय से भीड़ की हिंसा पर लगाम लगाने के लिए कानून बनाने की मांग हो रही है। खुद सुप्रीम कोर्ट इसकी जरूरत रेखांकित कर चुका है। हालांकि कुछ राज्य सरकारें भीड़ की हिंसा से निपटने के लिए कानून बनाने का उपक्रम कर रही हैं, लेकिन अगर सोचा जा रहा है कि केवल कानून बन जाने से समस्या का समाधान हो जाएगा तो यह सही नहीं। विधि के शासन को केवल नित-नए कानून बनाकर सशक्त नहीं किया जा सकता। कानून का निर्माण करने के साथ ही यह भी देखना होगा कि आखिर किन कारणों से भीड़ की हिंसा हो रही है। इन कारणों का निवारण भी करना होगा और यह तब होगा जब पुलिस को संसाधनों से लैस करने पर ध्यान दिया जाएगा।
भीड़ की हिंसा कभी बच्चों की चोरी के आरोपितों के खिलाफ होती है तो कभी मवेशी चोरी के संदिग्धों के साथ। छपरा में यही हुआ। यहां भीड़ ने मवेशी चोरी के संदेह में तीन युवकों को पकड़ा और फिर उन्हें इतना पीटा कि उनकी मौत हो गई।
चूंकि छपरा में मरने वालों में हिंदू और मुसलमान, दोनों हैं इसलिए स्वाभाविक तौर पर यह एजेंडा चलाने वालों को मुश्किल हो सकती है कि भीड़ की हिंसा केवल एक खास वर्ग के खिलाफ हो रही है। इसमें दोराय नहीं कि यह एजेंडा संकीर्ण राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए चलाया जा रहा है। इसी एजेंडे के चलते इस पर गौर करने से इन्कार किया जाता है कि मवेशियों की चोरी के साथ गोवंश की हत्या के मामले भी थम नहीं हरे हैं।
भीड़ की हिंसा को संकीर्ण राजनीति का जरिया बनाने से रोका ही जाना चाहिए, लेकिन यह तभी रुकेगा जब पुलिस छोटे-बड़े मसलों पर कानून हाथ में लेने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए मुस्तैदी से काम करेगी। चूंकि कानून एवं व्यवस्था राज्यों का विषय है इसलिए उन्हें सक्रियता और सतर्कता का परिचय देना ही होगा, लेकिन यह भी समय की मांग है कि केंद्र सरकार राज्यों पर इसके लिए दबाव बनाए कि वे ऐसे माहौल का निर्माण तत्परता से करें, जिससे भीड़ मनमानी करने में भय खाए।
यह सही है कि भीड़ की हिंसा पहले भी होती रही है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि उस पर लगाम लगती न दिखे। बीते कुछ समय से भीड़ की हिंसा पर लगाम लगाने के लिए कानून बनाने की मांग हो रही है। खुद सुप्रीम कोर्ट इसकी जरूरत रेखांकित कर चुका है। हालांकि कुछ राज्य सरकारें भीड़ की हिंसा से निपटने के लिए कानून बनाने का उपक्रम कर रही हैं, लेकिन अगर सोचा जा रहा है कि केवल कानून बन जाने से समस्या का समाधान हो जाएगा तो यह सही नहीं। विधि के शासन को केवल नित-नए कानून बनाकर सशक्त नहीं किया जा सकता। कानून का निर्माण करने के साथ ही यह भी देखना होगा कि आखिर किन कारणों से भीड़ की हिंसा हो रही है। इन कारणों का निवारण भी करना होगा और यह तब होगा जब पुलिस को संसाधनों से लैस करने पर ध्यान दिया जाएगा।
भीड़ की हिंसा कभी बच्चों की चोरी के आरोपितों के खिलाफ होती है तो कभी मवेशी चोरी के संदिग्धों के साथ। छपरा में यही हुआ। यहां भीड़ ने मवेशी चोरी के संदेह में तीन युवकों को पकड़ा और फिर उन्हें इतना पीटा कि उनकी मौत हो गई।
चूंकि छपरा में मरने वालों में हिंदू और मुसलमान, दोनों हैं इसलिए स्वाभाविक तौर पर यह एजेंडा चलाने वालों को मुश्किल हो सकती है कि भीड़ की हिंसा केवल एक खास वर्ग के खिलाफ हो रही है। इसमें दोराय नहीं कि यह एजेंडा संकीर्ण राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए चलाया जा रहा है। इसी एजेंडे के चलते इस पर गौर करने से इन्कार किया जाता है कि मवेशियों की चोरी के साथ गोवंश की हत्या के मामले भी थम नहीं हरे हैं।
भीड़ की हिंसा को संकीर्ण राजनीति का जरिया बनाने से रोका ही जाना चाहिए, लेकिन यह तभी रुकेगा जब पुलिस छोटे-बड़े मसलों पर कानून हाथ में लेने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए मुस्तैदी से काम करेगी। चूंकि कानून एवं व्यवस्था राज्यों का विषय है इसलिए उन्हें सक्रियता और सतर्कता का परिचय देना ही होगा, लेकिन यह भी समय की मांग है कि केंद्र सरकार राज्यों पर इसके लिए दबाव बनाए कि वे ऐसे माहौल का निर्माण तत्परता से करें, जिससे भीड़ मनमानी करने में भय खाए।
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