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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open {संचालक-बुद्ध अकादमी टीकमगढ़}
created Jul 20th 2019, 05:30 by my home
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जिस दौर में देश की लड़कियों ने लगातर नई ऊंचाईयां छूकर यह बताया है कि अगर उन्हें जंजीरों में नहीं जकड़ा जाए तो वे हर क्षेत्र में अपनी क्षमताएं साबित कर सकती हैं, उसमें उन्हें मोबाइल के इस्तेमाल से रोकना और उन पर सामाजिक जड़ परंपराओं को ढोने का बोझ लादना बेहद अफसोसजनक है। गुजरात के बनासकांठा जिले में ठाकोर समुदाय की एक पंचायत में अपने बीच की लड़कियों के लिए कुछ ऐसे फरमान जारी किए गए हैं, जिन्हें सामाजिक विकास की कसौटी पर जड़ता के उदाहरण के तौर पर ही देखा जाएगा। खबर के मुताबिक दांतीवाड़ा तालुक में बारह गांवों के इस समुदाय के बुजुर्गों ने बीती चौदह जुलाई को एक पंचायत और उसमें सर्वसम्मति से फरमान जारी किया कि अगर समुदाय के युवा अंतरजातीय विवाह करते हैं तो उनके परिवार को डेढ़ से दो लाख रुपए जुर्माना भरना पड़ेगा। इसके अलावा, अगर इस समुदाय की कोई अविवाहित युवती मोबाइल फोन के साथ पकड़ी जाती है तो उकने माता-पिता को जिम्मेदार माना जाएगा। इस तरह की पाबंदियों को वहां मौजूद इस समुदाय के करीब आठ सौ नेताओं सहित एक कांग्रेस विधायक तक का समर्थन प्राप्त है।
जातिगत दायरे में कैद मानसिकता को आज एक बड़ी सामाजिक समस्या के तौर पर देखा जा रहा है इसका हल अंतरजातीय संबंधों के रूप में ही माना जात है। उम्मीद की जाती है कि कोई सभ्य समुदाय जाति की दीवारों को तोड़ कर एक मानवीय मूल्यों वाले समाज की जड़ों को मजबूत करने में अपनी भूमिका निभाएगा। लेकिन इसके उलट अंतरजातीय विवाह पर पाबंदी और जुर्माना लगाने की घोषणा करके क्या साबित करने की कोशिश की जा रही है। इसके अलावा, अगर समुदाय के लोगों को अपने बीच की लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई की फिक्र है तो उन्हें आधुनिक तकनीकी से वंचित करने की जगह उल्टे उसकी सुविधा मुहैया कराना चाहिए। स्मार्टफोन जैसी आधुनिक तकनीकी का सकरात्मक उपयोग किया जाए तो वह ज्ञान को हासिल करने का एक बड़ा जरिया साबित होती है। लड़कियों के मोबाइल पर बात करने पर रोक लगाना एक तरह का पितृसत्तात्मक दमन है और वह किसी अन्य रूप में फूट सकता है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि बच्चों के पालन-पोषण और उनके सामाजिक प्रशिक्षण की बुनियाद को इतना मजबूत बनाया जाए कि वे विकास की तमाम संभावनाओं और रास्तों को अपने और समूचे मानव समुदाय के हित में इस्तेमाल करना सीखें।
जातिगत दायरे में कैद मानसिकता को आज एक बड़ी सामाजिक समस्या के तौर पर देखा जा रहा है इसका हल अंतरजातीय संबंधों के रूप में ही माना जात है। उम्मीद की जाती है कि कोई सभ्य समुदाय जाति की दीवारों को तोड़ कर एक मानवीय मूल्यों वाले समाज की जड़ों को मजबूत करने में अपनी भूमिका निभाएगा। लेकिन इसके उलट अंतरजातीय विवाह पर पाबंदी और जुर्माना लगाने की घोषणा करके क्या साबित करने की कोशिश की जा रही है। इसके अलावा, अगर समुदाय के लोगों को अपने बीच की लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई की फिक्र है तो उन्हें आधुनिक तकनीकी से वंचित करने की जगह उल्टे उसकी सुविधा मुहैया कराना चाहिए। स्मार्टफोन जैसी आधुनिक तकनीकी का सकरात्मक उपयोग किया जाए तो वह ज्ञान को हासिल करने का एक बड़ा जरिया साबित होती है। लड़कियों के मोबाइल पर बात करने पर रोक लगाना एक तरह का पितृसत्तात्मक दमन है और वह किसी अन्य रूप में फूट सकता है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि बच्चों के पालन-पोषण और उनके सामाजिक प्रशिक्षण की बुनियाद को इतना मजबूत बनाया जाए कि वे विकास की तमाम संभावनाओं और रास्तों को अपने और समूचे मानव समुदाय के हित में इस्तेमाल करना सीखें।
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