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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open

created May 24th 2019, 11:27 by


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देश की अर्थव्‍यवस्‍था इस समय कुछ चुनौतियों से जूझ रही है। इन चुनौतियों से निपटना नई सरकार के लिए नितांत अनिवार्य होगा। जनादेश हासिल करने के बाद सरकार के सामने उन वादों को पूरा करने की भी जिम्‍मेदारी होती है जिनके दम पर वह सत्‍ता में आती है। ये वादे संसाधनों के बिना पूरे नहीं हो सकते। ऐसे में सरकार के सामने यह दोहरी चुनौती खड़ी हो जाती है कि वह अर्थव्‍यवस्‍था की स्थिति में सुधार करने के साथ ही जनता की अपेक्षाओं-आकांक्षाओं पर भी खरी उतरे। वास्‍तव में यह कोई विरोधाभास नहीं। अगर अर्थव्‍यवस्‍था की तस्‍वीर बेहतर होगी तो सरकार की झोली भी भरी होगी। स्‍वाभाविक है कि इससे सरकार के पास खर्च करने की गुंजाइश भी बढ़ती है। नई सरकार के सामने सबसे पहली चुनौती अर्थव्‍यवस्‍था को तेजी देने की होगी, जिसकी चाल पिछले कुछ वक्‍त से सुस्‍त सी पड़ गई है। हालांकि इसके लिए घरेलू कारकों के साथ ही अंतरराष्‍ट्रीय पहलू भी उतने ही जिम्‍मेदार हैं।
    पिछले वित्‍त वर्ष की दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्‍पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत पर अटक गई। यह दर पिछले पंद्रह वर्षों के दौरान औसतन सात फीसदी वृद्धि से कम थी, जो निश्चित ही चिंता का विषय है। इसके बावजूद भारत दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्‍यवस्‍था बना हुआ है, लेकिन यह भारत की संभावनाओं के मुकाबले अपेक्षाकृत कम है। वैश्विक अनिश्चितताओं से जहां निर्यात में आई गिरावट ने आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार कुछ कुंद की है, वहीं घरेलू स्‍तर पर उपभोग घटने से भी आर्थिक चाल निस्‍तेज पड़ी है।

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