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ROYALDEEP TYPING TEST SERIES PART-11 MORENA MADHYA PRADESH
created May 24th 2019, 10:36 by devesh singh
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धारा 43 जुर्माना और क्षेत्राधिकार।
भारतीय पैनल कोड में साइबर अपराधों से सम्बन्धित प्रावधान निम्न प्रकार हैं। यदि कोई व्यक्ति कम्प्यूटर या कम्प्यूटर नेटवर्क के मालिक या इसके लिए अधिकृत अधिकारी के आदेश के बिना कम्प्यूटर या कम्प्यूटर के नेटवर्क तक अपनी पहुंच बना लेता है और कम्प्यूटर में संग्रहित डाटा या जानकारियां प्राप्त कर लेता है अथवा कम्प्यूटर या कम्प्यूटर नेटवर्क वायरस जैसी कोई चीज डालता है या ऐसा करने की कोशिश करता है या कम्प्यूटर नेटवर्क को बाधित करने या उसमें संग्रहित आंकड़ों या कार्यक्रमों को बाधित करता है या ऐसा करने की कोशिश करता है, तो उसे पीडित पक्ष को हर्जाना देना पड़ सकता है जिसकी लागत अधिकतम एक करोड़ रुपए एक हो सकती है।
धारा 46 निष्पादन का अधिकार। सूचना तकनीक कानून के अन्तर्गत मामलों के निष्पादन के लिए इसमें धारा 46 का प्रावधान किया गया है। मामलों के निष्पादन का अधिकार सचिव सूचना प्रौद्योगिकी को दिया गया है जो इस कानून की धारा 46 तथा 47 के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति की राशि का निर्धारण करेगा। साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के प्रावधानों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। बल्कि उसका उद्देश्य प्राकृतिक न्याय की अवधारणा को सुनिश्चित करना है। इसके अलावा सूचना तकनीकी कानून के अन्य प्रावधानों के मदेनजर ट्रिब्यूनल अपनी प्रक्रिया को नियमित करने के लिए स्वतंत्र है।
धारा 66 ए के अनुसार यदि कोई व्यक्ति कम्प्यूटर या किसी तकनीक माध्यम से कोई ऐसी जानकारी भेजता है जो दुर्भावना से प्रेरित हो या खतरनाक हो, किसी को परेशान करने, खतरे में डालने, चोट पहुंचाने, धमकी देने, प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने, दुश्मनी की भावना या घृणा फैलाने वाली हो, तो उस पर संवाद सेवाओं के माध्यम से प्रतिबंधित सूचनाएं भेजने के लिए दंड के प्रावधान के अन्तर्गत तीन साल के कारावास के साथ-साथ जुर्माने का दंड आरोपित किया जा सकता है।
धारा 66 बी यदि कोई व्यक्ति किसी कम्प्यूटर या कम्प्यूटर नेटवर्क से चुराई गई या गलत तरीके से हासिल की गई सूचनाएं प्राप्त करता है या अपने आस पास रख लेता है तो उसे दंड का भुगतान करना पड़ सकता है।
भारतीय पैनल कोड में साइबर अपराधों से सम्बन्धित प्रावधान निम्न प्रकार हैं। यदि कोई व्यक्ति कम्प्यूटर या कम्प्यूटर नेटवर्क के मालिक या इसके लिए अधिकृत अधिकारी के आदेश के बिना कम्प्यूटर या कम्प्यूटर के नेटवर्क तक अपनी पहुंच बना लेता है और कम्प्यूटर में संग्रहित डाटा या जानकारियां प्राप्त कर लेता है अथवा कम्प्यूटर या कम्प्यूटर नेटवर्क वायरस जैसी कोई चीज डालता है या ऐसा करने की कोशिश करता है या कम्प्यूटर नेटवर्क को बाधित करने या उसमें संग्रहित आंकड़ों या कार्यक्रमों को बाधित करता है या ऐसा करने की कोशिश करता है, तो उसे पीडित पक्ष को हर्जाना देना पड़ सकता है जिसकी लागत अधिकतम एक करोड़ रुपए एक हो सकती है।
धारा 46 निष्पादन का अधिकार। सूचना तकनीक कानून के अन्तर्गत मामलों के निष्पादन के लिए इसमें धारा 46 का प्रावधान किया गया है। मामलों के निष्पादन का अधिकार सचिव सूचना प्रौद्योगिकी को दिया गया है जो इस कानून की धारा 46 तथा 47 के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति की राशि का निर्धारण करेगा। साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के प्रावधानों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। बल्कि उसका उद्देश्य प्राकृतिक न्याय की अवधारणा को सुनिश्चित करना है। इसके अलावा सूचना तकनीकी कानून के अन्य प्रावधानों के मदेनजर ट्रिब्यूनल अपनी प्रक्रिया को नियमित करने के लिए स्वतंत्र है।
धारा 66 ए के अनुसार यदि कोई व्यक्ति कम्प्यूटर या किसी तकनीक माध्यम से कोई ऐसी जानकारी भेजता है जो दुर्भावना से प्रेरित हो या खतरनाक हो, किसी को परेशान करने, खतरे में डालने, चोट पहुंचाने, धमकी देने, प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने, दुश्मनी की भावना या घृणा फैलाने वाली हो, तो उस पर संवाद सेवाओं के माध्यम से प्रतिबंधित सूचनाएं भेजने के लिए दंड के प्रावधान के अन्तर्गत तीन साल के कारावास के साथ-साथ जुर्माने का दंड आरोपित किया जा सकता है।
धारा 66 बी यदि कोई व्यक्ति किसी कम्प्यूटर या कम्प्यूटर नेटवर्क से चुराई गई या गलत तरीके से हासिल की गई सूचनाएं प्राप्त करता है या अपने आस पास रख लेता है तो उसे दंड का भुगतान करना पड़ सकता है।
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