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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT Admission Open Anshul Khare Guddu

created Mar 19th 2019, 04:26 by AnshulKhareGuddu


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होली एक प्राचीन त्‍योहार है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मुख्‍य रूप से यह बुराई पर अच्‍छाई की विजय का पर्व है। भारत और चीन में इसे इसी परिप्रेक्ष्‍य में मनाने की परंपरा है। आज इस पर्व को मूल अर्थों में मनाना ज्‍यादा प्रासंगिक है। क्‍योंकि नैतिकता-अनैतिकता के सभी मानदण्‍ड खोटे होते जा रहे हैं। समाज में जिसकी लाठी उसी की भैंस का कानून प्रभावी होता जा रहा है। साधन और साध्‍य का अंतर खत्‍म हो रहा है। गलत साधनों से कमाई संपत्ति और बाहुबल का बोलबाला हर जगह बढ़ रहा है। सामूहिक उपलब्धियों की बजाय व्‍यक्तिगत उपलब्धियों को सामाजिक श्रेष्‍ठता के रूप में मूल्‍यांकन किया जाने लगा है। ऐसी राक्षसी शक्तियों के समक्ष, नियंत्रक मसलन कानूनी ताकतों बौनी साबित हो रही हैं। दुविधा के इसी संक्रमण काल में होलिका को मिले वरदान, आग में जलने की कथा की अपनी प्रासंगिकता है। अत: बुराई का जलना और अत्‍याचारी दुरचारी ताकतों का समाप्‍त होना तय है। सम्राट हिरण्‍यकश्‍यप की बहन होलिका को आग में जलने का वरदान था। हम यह भी कह सकते कि उसके पास कोई ऐसी वैज्ञानिक तकनीक कि, जिसे प्रयोग में लाकर वह अग्नि में प्रवेश करने के बाबजूद नहीं जलती थी। लेकिन जब वह अपने भतीजे प्रहलाद का अंत करने की क्रूर मानसिकता के साथ उसे गोद में लेकर प्रज्‍ज्‍वलित अग्नि में प्रविष्‍ट हुई, तो प्रहलाद तो बच गये किंतु होलिका जलकर मर गई। उसे मिला वरदान काम नहीं आया, क्‍योंकि वह असत्‍य और अनाचार कि असुरी शक्ति में बदल गई थी। वह अहंकारी भाई के दुराचारों में भागीदार हो गई थी। इस लिहाज से कोई स्‍त्री नहीं बल्कि दुष्‍ट और दानवी प्रवृत्तियों का साथ देने वाली एक बुराई जलकर खाक हो गई थी। लेकिन इस बुराई का नाश तब हुआ, जब नैतिक साहस का परिचय देते हुये एक अबोध बालक अन्‍याय और उत्‍पीड़न के विरोध में दृढ़ता से खड़ा हुआ। इसी कथा से मिलती-जुलती चीन में एक कथा प्रचलित है, जो होली का पर्व मनाने का कारण बनी है। चीन में इस दिन पानी में रंग घोलकर लोगों को बहुरंगों से भिगोया जाता है। चीनी कथा भारतीय कथा से भिन्‍न जरूर है, लेकिन आखिर में वह भी बुराई पर अच्‍छाई की विजय का प्रतीक है। चीन में होली का नाम रंग और पानी से सराबोर होने का पर्व है। यह त्‍योहार चीन के युतांन जाति की अल्‍पसंख्‍यक नामक जाति का मुख्‍य त्‍योहार माना जाता है। इसे वे नये वर्ष की शुरुआत के रूप में मनाते हैं।  
प्रैक्टिस लगातार करते रहें।

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