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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) II ☺ II आकाश खरे (शिवम)

created Aug 20th 2018, 03:54 by akash khare


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लोग अक्‍सर गांव से शहर इसलिए पलायन करते हैं कि वे वहां सुकून की जिंदगी बिता सकेंगे। उन्‍हें वहां सड़क, अस्‍पताल और बिजली आदि की सुविधाएं मिलेंगी, लेकिन बरसात शहरों को नर्क बना दे रही है। सड़कों पर पानी भर जाता है, बिजली कट जाती है, आवागमन ठप हो जाता है, घरों में पानी भर जाता है। शहरों की यह दुर्गति वास्‍तव में हमारी ही बनाई हुई है। हमने बाढ़ से छुटकारा पाने के प्रयास में ऐसे काम किए हैं जिनसे बाढ़ की विभीषिका और बढ़ गई है। इन दिनों केरल की बाढ़ चर्चा में है। इसके पहले देश के दूसरे हिस्‍से बाढ़ के कारण चर्चा में थे। नदियों में बाढ़ का एक बड़ा कारण यह है कि  हमने नदियों को खड़ी दीवारों के बीच में कैद कर लिया है जैसे लखनऊ में गोमति और मुंबई में मीठी नदी को। सामान्‍य परिस्थिति में जब तक नदी का स्‍तर दीवारों से कम रहता है तब तक नदी पानी को बहा ले जाती है और शहर बाढ़ से प्रभावित नही होता, लेकिन जब बाढ़ ज्‍यादा तीव्र हो जाए तब नदी को फैलाने की जगह ही नहीं मिलती। सामान्‍यत: नदी के किनारों में एक कोण होता है। यह काफी कुछ अंग्रेजी के वी अक्षर जैसा होता है।  
    जैसे-जैसे नदी का जलसतर बढ़ता है वैसे-वैसे नदी का क्षेत्रफल भी बढ़ता जाता है और नदी का पानी को बहा ले जाने की क्षमता भी बढ़ती जाती है। हमने दीवार बनाकर नदी के पानी के फैलने के अवसर को कम कर दिया है। नदी का पानी जब दीवार से ऊपर उठता है तो वह चारों तरफ फैल जाता है जैसे कुछ दिन पूर्व मीठी नदी का पानी मुंबई के अगल-बगल के इलाकों में फैल गया था। हमारी नीति है कि पहाड़ी क्षेत्र के पानी को टिहरी जैसी झीलों में रोक लिया जाए। भीमगोड़ा जैसे बैरोज से बरसाती पानी को निकालकर सिंचाई के लिए उपयोग कर लिया जाए। भीमगोड़ा जैसे बैराज बरसाती पानी कम हो जाता है और हमें बाढ़ से छुटकारा मिल जाता है।

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