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अदालत ने सही फरमाया। सत्ताधारियों को सत्ता का नशा हो चला है। तभी तो अपेन आगे किसी को कुछ गिन नहीं रहे। ऐसे बिहेव करते हैं जैसे सारी कायनात उनके अंगूठे के नीचे हो। सच मानें तो सत्ताधारियों के इस उच्छृंखल व्यवहार को देख हमें एक पुराना मेवाती लोक गीत याद आ रहा है, जरा आप भी मजा लीजिए ऐडी नीचे थाणो मेरे, ठोकर में सपाही रे, तोहे मरवाय द्यू, मेरा बाप की लुगाई रे.. गायिका मस्ती में गाते हुए कह रही है कि ये सारा थाना मेरे ऐडी के नीचे है और सिपाही तो मेरी ठोकर में है क्योंकि थानेदार मेरा पति है। सत्ताधारी यही सोचते हैं। उनका मानना है कि कानून, कायदा, इजलास, अदालत, कोतवाली, पुलिस, अफसर, बाबू सब उनकी जेब में पड़े हैं। उन्होंने कह दिया जो सच, उन्होंने मान लिया सो कानून। चचाजान रहीम ने लिखा है कनक-कनक ते सौ गुना, मादकता अधिकाय, यानी कनक (सोने) में कनक (धतूरे) से सौ गुना ज्यादा नशा है। कुर्सी से सत्ता आती है, सत्ता से धन आता है, धन से सोना खरीदा जाता है और सोने से नशा चढ़ता है जो दुनिया के सारे नशों का सरताज होता है। बड़के जन यह भी कह गए हैं कि नशे तो इकहरे ही अच्छे होते हैं, दोहरे नशे आदमी को दम्भी, घमण्डी बना देते हैं। हमारे नेताजी तो दोहरे नशे में गाफिल हैं एक तो धन का नशा और दूसरा कूर्सी का नशा। इन दोनों नशे में चूर होकर वे भूल गए कि भैया गरब तो लंकापति रावण का भी नहीं बचा था। सो अदालत के एक झटके से चारों खाने चित हो गए और पड़े-पड़े क्षमा-क्षमा चिल्लाने लगे। रही-सही कसर पिछले दिनों आम चुनाव ने पूरी कर दी। ऐसी पटखनी मारी कि अभी तक अपनी कोहनी-गोड़े सहलाते घूम रहे हैं। हमारी तो यही इल्तिजा है भाई! कुछ भी करियो पर घमण्ड मत करियो। घमण्डी को चांचरो तो एक न एक दिन फूटे ही है एसो म्हानी नानी कहबो करी।
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