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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP)
created Feb 24th 2018, 04:33 by DeendayalVishwakarma
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राजनीति में कुछ भी संयोगवश नहीं होता, यदि यह होता है तो आप शर्त लगा सकते हैं कि इसकी योजना ही उस तरह बनाई थी। एक कोट में यह कहा गया है, जो व्यापक रूप से रूटवेल्ट का बताया जाता है। दिल्ली में 20 फरवरी की रात जो पटकथा सामने आई वह सुनियोजित प्रतीत होती है। लगता है मुख्य सचित अंशु प्रकाश को जाल बिछाकर मुख्यमंत्री निवास पर बुलाया गया, ऐसी जगह जहां जाने से वे इंकार नहीं कर सकते थे। अपने ही विधायकों के दबाव में मुख्यमंत्री ने उनका सीधे सामना करने के लिए मुख्य सचिव को बुला लिया। लेकिन, इसके बाद पटकथा गड़बड़ होकर मुख्य पात्र के काबू से बाहर चली गई। यह कोई गोपनीय रहस्य नहीं है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मीडिया और अपने सार्वजनिक भाषणों के माध्यम से भ्रष्टों को जाल में फंसाने की वकालत करते रहे हैं- अपने मोबाइल स वीडियो शूट करो और भ्रष्ट को कठघरे में खड़ा कर दो। भ्रष्टाचार रोकने में इसकी उपयोगिता जो भी रही हो, यह संदेश लुप्त नहीं हुआ। इस अजीब से प्रकरण से देशभर में संदेश गया है कि जब अन्य निर्वाचित विधायकों के साथ खुद मुख्यमंत्री ऐसे हथकंडों पर उतर सकता है, फिर तो यह खुला खेल ही हो गया है।
संपूर्णता में देखेंतो यह दुखद घटना इतने बरसों में हुए घटनाक्रमों का चरमोत्कर्ष है। बिहार में नौकरशाहों के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार का लंबा इतिहास है लेकिन, हम अपवाद मानकर इसकी अनदेशी कर देते हैं। 1993 में गोपालगंज के डीएम की राजनीतिक भीड़ ने क्रूरतापूर्ण हत्या की थी और पिछले ही साल सारण के डीएम की एक राजनीतिक दल के लोगों ने रॉड से पिटाई की थी। अभी हाल में मध्यप्रदेश के मंदसौर में भीड़ ने जिला कलेक्टर और एसपी की पिटाई कर दी थी। वहां राज्य अपने अफसरों को संरक्षण नहीं दे सका बल्कि उनका तबादला करना बेहतर समझा गया था। और पीछे जाएं तो ओडिशा के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने पूरे राज्य को सलाह दी थी कि जो बाबू न माने उसे चांटा मार दिया जाए, जिसका अंतत: यह नतीजा हुआ कि एक बेराजगार युवक ने उनकी सलाह पर चलते हुए उन्हें ही थप्पड़ मार दिया। मैं यहां यह रेखांकित करना चाहता हूँ कि राज्य की इमारत ब्यूरोक्रेसी और निर्वाचित नेतृत्व की नींव पर निर्भर है। एक के द्वारा दूसरे को जान-बूझकर कमजोर करने से पूरी इमारत का अस्थिर होना तय है और अब यह देश की राजनीति में निकृष्टतम स्तर पर पहुंच गया है।
संपूर्णता में देखेंतो यह दुखद घटना इतने बरसों में हुए घटनाक्रमों का चरमोत्कर्ष है। बिहार में नौकरशाहों के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार का लंबा इतिहास है लेकिन, हम अपवाद मानकर इसकी अनदेशी कर देते हैं। 1993 में गोपालगंज के डीएम की राजनीतिक भीड़ ने क्रूरतापूर्ण हत्या की थी और पिछले ही साल सारण के डीएम की एक राजनीतिक दल के लोगों ने रॉड से पिटाई की थी। अभी हाल में मध्यप्रदेश के मंदसौर में भीड़ ने जिला कलेक्टर और एसपी की पिटाई कर दी थी। वहां राज्य अपने अफसरों को संरक्षण नहीं दे सका बल्कि उनका तबादला करना बेहतर समझा गया था। और पीछे जाएं तो ओडिशा के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने पूरे राज्य को सलाह दी थी कि जो बाबू न माने उसे चांटा मार दिया जाए, जिसका अंतत: यह नतीजा हुआ कि एक बेराजगार युवक ने उनकी सलाह पर चलते हुए उन्हें ही थप्पड़ मार दिया। मैं यहां यह रेखांकित करना चाहता हूँ कि राज्य की इमारत ब्यूरोक्रेसी और निर्वाचित नेतृत्व की नींव पर निर्भर है। एक के द्वारा दूसरे को जान-बूझकर कमजोर करने से पूरी इमारत का अस्थिर होना तय है और अब यह देश की राजनीति में निकृष्टतम स्तर पर पहुंच गया है।
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