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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Apr 26th, 10:39 by lucky shrivatri
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भ्रष्टाचार व अनियमितताओं के मामलों में अदालतों के फैसले निश्चित ही उन लोगों के लिए राहत भरे होते हैं जो सिस्टम में घुन की तरह लगे भ्रष्टाचार से त्रस्त होते है। कलकत्ता हाईकोर्ट का ताजा फैसला भी ऐसी ही राहत दिलाने वाला कहा जा सकता है। हाईकोर्ट ने वर्ष 2016 में पश्चिम बंगाल में 24 हजार से ज्यादा शिक्षकों की भर्ती को रद्द करने का फैसला सुनाया है। इतना ही नहीं, कोर्ट ने पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग को एक पखवाड़े के भीतर शिक्षकों की नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए है। भर्ती प्रक्रिया में भ्रष्टाचार को लेकर वंचित अभ्यर्थी हाईकोर्ट की शरण में पहुंचे थे। इनका आरोप था कि अपात्र लोगों से रिश्वत लेकर उन्हें नियुक्तियां दे दी गई और पात्र लोगों को वंचित कर दिया गया।
लोकसभा चुनाव के दौरान आए हाईकोर्ट के इस फैसले पर अब राजनीति भी शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात कहीं है, वहीं प्रमुख प्रतिपक्षी दल भाजपा इस घोटाले को लेकर सीएम बनर्जी पर निशाना साध रही है। हालांकि इस फैसले के बाद टीएमसी नेता कुणाल घोष का यह बयान भी विचारणीय हैं कि उन लोगों को सजा नहीं मिलनी चाहिए जो योग्यता के बूते चयनित किए गए। तमाम बयानबाजी के बीच फैसला सुनने के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट के बाहर जमा पीडि़त अभ्यर्थियों ने न्याय मिलने पर खुशी जाहिर की। अदालत का फैसला अपनी जगह है। इसको लेकर हो रही बयानबाजी के भी अलग-अलग मायने हो सकते हैं, लेकिन शिक्षक जैसे पवित्र पेशे की नियुक्तियां भ्रष्टाचार के दरवाजे से हुई हों तो चिंता होनी स्वाभाविक है। महत्वपूर्ण बात यह हैं कि इस प्रकरण में तत्कलीन शिक्षा मंत्री और उनके करीबियों को भी जांच के दायरे में लिया गया था। इससे इस प्रकरण की गंभीरता का पता चलता है। ईडी व सीबीआइ जैसी जांच एजेसियों ने दखल किया तो पश्चिम बंगाल में सतारूढ़ दल ने इसे एजेसियों का राजनीतिक दुरूपयोग बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अब नौकरी से हटाए गए शिक्षकों को अपनी अवधि का वेतन ब्याज सहित लौटाना होगा। पूरे आठ साल अपात्र शिक्षकों ने कैसी पढाई कराई होगी, इसका भी अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
पश्चिम बंगाल का तो यह उदाहरण मात्र है। शायद ही कोई प्रदेश ऐसा होगा, जहां भर्ती प्रक्रिया विवादों में नहीं आई हो। ऐसे में लोगो के दिलोदिमाग में यह बात भी गहराई से बैठने लगी है कि चांदी की खनक के दम पर कुछ भी काम कराया जा सकता है। खास तौर से सरकारी महकमों में होने वाली भर्तियो को लेकर समूचे सिस्टम को पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
लोकसभा चुनाव के दौरान आए हाईकोर्ट के इस फैसले पर अब राजनीति भी शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात कहीं है, वहीं प्रमुख प्रतिपक्षी दल भाजपा इस घोटाले को लेकर सीएम बनर्जी पर निशाना साध रही है। हालांकि इस फैसले के बाद टीएमसी नेता कुणाल घोष का यह बयान भी विचारणीय हैं कि उन लोगों को सजा नहीं मिलनी चाहिए जो योग्यता के बूते चयनित किए गए। तमाम बयानबाजी के बीच फैसला सुनने के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट के बाहर जमा पीडि़त अभ्यर्थियों ने न्याय मिलने पर खुशी जाहिर की। अदालत का फैसला अपनी जगह है। इसको लेकर हो रही बयानबाजी के भी अलग-अलग मायने हो सकते हैं, लेकिन शिक्षक जैसे पवित्र पेशे की नियुक्तियां भ्रष्टाचार के दरवाजे से हुई हों तो चिंता होनी स्वाभाविक है। महत्वपूर्ण बात यह हैं कि इस प्रकरण में तत्कलीन शिक्षा मंत्री और उनके करीबियों को भी जांच के दायरे में लिया गया था। इससे इस प्रकरण की गंभीरता का पता चलता है। ईडी व सीबीआइ जैसी जांच एजेसियों ने दखल किया तो पश्चिम बंगाल में सतारूढ़ दल ने इसे एजेसियों का राजनीतिक दुरूपयोग बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अब नौकरी से हटाए गए शिक्षकों को अपनी अवधि का वेतन ब्याज सहित लौटाना होगा। पूरे आठ साल अपात्र शिक्षकों ने कैसी पढाई कराई होगी, इसका भी अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
पश्चिम बंगाल का तो यह उदाहरण मात्र है। शायद ही कोई प्रदेश ऐसा होगा, जहां भर्ती प्रक्रिया विवादों में नहीं आई हो। ऐसे में लोगो के दिलोदिमाग में यह बात भी गहराई से बैठने लगी है कि चांदी की खनक के दम पर कुछ भी काम कराया जा सकता है। खास तौर से सरकारी महकमों में होने वाली भर्तियो को लेकर समूचे सिस्टम को पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
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