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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
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रेलवे ट्रेक और वन क्षेत्रों के बीच से गुजरते सड़क मार्गो पर वन्यजीवों की हादसों में मौत की घटनाएं बरसों से बड़ी समस्या बनी हुई है। इस समस्या के समाधान को लेकर सुस्ती दिखाने पर गुजरात हाईकोर्ट सख्त हुआ है। उसने इसी साल जनवरी में रेल पटरियों पर दो अलग-अलग दुर्घटनाओं में तीन शेरों की मौत की जांच में ढिलाई पर वन विभाग व रेल मंत्रालय को फटकार लगाई है। कोर्ट ने तीन एशियाई शेरों की अप्राकृतिक मौत को लेकर स्वप्रेरित जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि संबंधित महकमों के अधिकारी निवारक उपाय करने में विफल रहे। हाईकोर्ट ने दोनों मंत्रालयों के सचिवों को इस वर्ष 9 से 21 जनवरी के बीच हुई दुर्घनाओं के कारणों की जांच के लिए उच्च स्तरीय समिति गठित करने और अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करने के निर्देश दिए है। रेलवे ट्रेक पर वन्यजीवों के जान गंवाने की कोई यह अकेली घटना नहीं है। वन्यजीवों को बचाने के लिए रेलवे ट्रेक दोनों और मजबूत बाड़ बनाने और वनरूजीवों के मूवमेंट वाले मार्ग पर रेलवे अंडरब्रिज और ओवरब्रिज बनाने का सुझाव करीब एक दशक पहले दिया गया था। हालांकि बाड लगाने का विचार इसलिए फलीभूत नहीं हो सका क्योंकि इससे वन्यजीवों के शिकार का खतरा बढ़ने की आशंका जताई थी। गुजरात हाईकोर्ट ने पिछले माह भी रेलवे को इस बात के लिए फटकार लगाई थी कि उसकी उदासीनता के कारण रेल पटरियों पर वन्यजीवों की मौत की घटनांए थम नहीं रही। सेंचरी क्षेत्र से गुजरते समय ट्रेनों की स्पीड़ कम रखने के स्थायी निर्देश हैं लेकिन इसकी भी अवहेलना होती दिखती है। बात रेल पटरियों की ही नहीं। वन्यजीव अभयारण्यों के बीच से निकलते सड़क मार्गो पर भी हादसों में वन्यजीवों की मौतों की खबरे गाहे-बगाहे आती ही रहती है। चिंता की बात यह भी हैं कि निगरानी की पुख्ता व्यवस्था नहीं होने के कारण अधिकांश मामलों में रेल व सड़क पर हादसों में घायल होने वाले वन्यजीवों को समय पर समुचित उपचार तक नहीं मिल पाता। विकास की अंधी दौड़ में पहले से ही वन क्षेत्र सीमित होता जा रहा है। सरकारों ने अलग-अलग वन्यजीवों के लिए कॉरिडोर भी बनाए हैं लेकिन ये जरूरत के हिसाब से काफी कम है।
वन्यजीव किसी के वोटर नहीं है। इसलिए राजनीतिक दलों व सरकारों को उनकी परवाह भला क्यों होने लगी? ये तो अदालते ही हैं जो समय-समय पर सरकारों को सावचेत करती रहती है। वन्यजीवों को ऐसे हादसों से बचाने के लिए सतत प्रयासों की जरूरत है। अभयारण्य विकसित करना ही काफी नहीं बल्कि इनमें वन्यजीवों की सुरक्षित आवाजाही भी तय करनी होगी।
वन्यजीव किसी के वोटर नहीं है। इसलिए राजनीतिक दलों व सरकारों को उनकी परवाह भला क्यों होने लगी? ये तो अदालते ही हैं जो समय-समय पर सरकारों को सावचेत करती रहती है। वन्यजीवों को ऐसे हादसों से बचाने के लिए सतत प्रयासों की जरूरत है। अभयारण्य विकसित करना ही काफी नहीं बल्कि इनमें वन्यजीवों की सुरक्षित आवाजाही भी तय करनी होगी।
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