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CPCT Typing Practice-10 कश्‍मीर समस्‍या-1 (GAURAV TIWARI)

created Jul 24th 2017, 04:12 by gauravtiwari1397033


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आज कोई भी इस ऐतिहासिक तथ्‍य को झुठला नहीं सकता कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू के गलत निर्णयों की वजह से ही कश्‍मीर समस्‍या ने जन्म लिया। जब ब्रिटिश सरकार ने हिन्‍दुस्‍तान को आजाद करने के लिए भारतीय स्वरतंत्रता अधिनियम 1947 पारित किया तो उसमें हिन्‍दुस्‍तान की उन रियासतों को भारत या पाकिस्‍तान में सम्मिलित होने अथवा स्‍वतंत्र रहने का अधिकार दिया जिन पर राजा महाराजाओं का शासन था। परिणामस्‍वरूप उस समय जम्‍मू कश्‍मीर के महाराजा हरिसिंह ने भारत या पाकिस्‍तान में शामिल होने से इंकार कर दिया और घोषणा की कि वह स्‍वतंत्र रहकर ही दोनों देशों पाकिस्‍तान और हिन्‍दुस्‍तान से समझौता करेंगे। 14 अगस्‍त 1947 को पाकिस्‍तान बनने की घोषणा की गई और 15 अगस्‍त 1947 को भारत स्‍वतंत्र हो गया। पाकिस्‍तानी शासकों ने तभी से महाराजा हरिसिंह को जम्‍मू कश्‍मीर का विलय पाकिस्‍तान में करने के लिए मजबूर किया। लेकिन जब वे इसके लिए तैयार नहीं हुए तो उन्‍होंने पहले तो जम्‍मू कश्‍मीर की आर्थिक नाके बन्‍दी की और फिर 22 अक्‍टूबर 1947 को कबालियों की आड़ में राज्‍य पर अचानक हमला कर दिया। जम्मू कश्‍मीर पर पाकिस्‍तानी हमले के दो दिन बाद ही 24 अक्टू्बर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने जम्‍मू कश्‍मीर के बिना शर्त भारत में विलय की घोषणा कर दी और भारत से सैनिक सहायता मांगी। लेकिन उस समय चूंकि भारत की कोई वायूसेवा नहीं थी, तत्‍कालीन नेहरू सरकार द्वारा प्राइवेट हवाई सेवाओं के जहाजों से कश्‍मीर को सेना भेजी गई। ऐसा करने में भारतीय सेना की कश्‍मीर पहूंचने की व्‍यवस्‍था में 3 दिन लग गए तथा परिणाम यह हुआ कि इन पांच दिनों में पाकिस्‍तानी फौजों को राज्‍य में बहुत हद तक तबाही मचाने का अवसर मिल गया। महाराज हरिसिंह के विलय प्रस्‍ताव को स्‍वीकार कर लेने के बाद 27 अक्‍टूबर 1947 को जम्‍मू कश्‍मीर कानूनी दृष्टि से भारत का अंग बन गया था। लेकिन नेहरू सरकार ने फिर भी यह आश्‍वासन दे डाला कि शान्ति स्‍‍थापना होने पर राज्य के लोगों की भारत या पाक में मिलने की इच्‍छा का पता लगाया जाएगा। यदि आज के परिप्रेक्ष्‍य में देखा जाए तो यह नेहरू सरकार की हिमालय जैसी एक विशाल भूल थी। इसके बाद एक गलत निर्णय यह रहा कि कानून की दृष्‍टी से विलय पूर्ण होने पर भी भारत के संविधान में अनुच्‍छेद 370 को जोड़कर भारत के अन्‍य राज्‍यों से अलग दर्जा दे दिया। महाराज हरिसिंह के बेटे कर्ण सिंह को सदरे रियासत बना दिया गया। सरदार पटेल ने इसका विरोध करते हुए सुझाव दिया था कि पाकिस्‍तान से उजड़कर आए शरणार्थियों को जम्मूू कश्‍मीर में बसाया जाए। लेकिन शेख अब्‍दुल्‍ला इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसलिए पं नेहरू ने भी इसे पसन्‍द नहीं किया। इसे एक विडम्‍बना ही कहेंगे कि महाराजा हरिसिंह के प्रस्‍ताव के आधार पर भारत में कश्‍मीर का विलय पूर्ण होने पर भी संविधान के अनुच्‍छेद 370 के अन्‍तर्गत कश्‍मीर का अन्‍य राज्‍यों से भिन्‍न अस्तित्‍व बनाए रखा। शायद ही किसी देश के दो संविधान, दो निशान और दो प्रधान हो सकते हैं? दुनिया में भारत पहला देश था, जहां यह हुआ। जम्‍मू कश्‍मीर का आज तक झण्‍डा अलग है। शेख अब्‍दुल्‍ला जब तक सत्‍ता में रहे। उन्‍हें प्रधानमंत्री कहा जाता था, जबकि अन्य  सभी राज्‍यों में मुख्‍यमंत्री थे। देश के सभी राज्‍यों में राज्‍यपाल थे। अकेले कश्‍मीर में सदरे रियासत था। इतना ही नहीं, भारत के नागरिक बिना वीसा के कश्‍मीर नहीं जा सकते थे और भारत के सर्वोच्‍च न्‍यायालय के निर्णय भी वहां लागु नहीं होते थे। इन्हींं सब बातों ने दुनिया को यह समझने और मानने का मौका दिया कि कश्‍मीर भारत से अलग है। पं नेहरू की एक और बड़ी गलती ये हुई कि वे पाकिस्‍तान के हमले को संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ में ले गए। जिसके कारण वह अभी तक अनिर्णित पड़ा हुआ है।

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